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Monday, December 5, 2011

मेरी अनुभूति -1


फूल बनने को आतुर
कली में समाहित
पंखुड़ियों को
यह आभास भी नहीं हुआ होगा
कि...... एक दिन
उन्हें फूल से अलग हो जाना होगा //

ठीक इसी तरह
मुझे मालूम नहीं था प्रिय !
कि तुम्हारा साथ
एक दिन
इन्हीं पंखुड़ियों की तरह
टूट जाएगा //

Saturday, December 3, 2011

साली है दिलवाली


लगती हो तुम मेरी साली
थमती सिर्फ चाय की प्याली
आओ बैठो, संग-संग मेरे
अब कर लो कुछ हंसी-ठिठोली //

घरवाली तो दाल-भात है
तुम ऊपर की सतरंगी चटनी
वो शराब है बिना नशा की
तुम हो जैसे भंग की गोली //
आओ बैठो, संग-संग मेरे
अब कर लो कुछ हंसी-ठिठोली //

Monday, November 21, 2011

जन्म -दिन मुबारक


(मित्रो सुश्री माधवी मिश्रा मेरी संबंधी हैं ,मित्र हैं और सबसे बढ़कर मेरी कविताओं के फैन हैं .... उनका २ दिसंबर को जन्म दिन है .... और मैंने अपने फैन के लिए उनके जन्म दिन के अवसर पर एक छोटी से कविता लिखी हैं ...आशा है आप सभी मित्रों का आशीर्वाद उन्हें मिलेगा )

कृति -पताका सी फहरो
धूमकेतु सी तुम बिचरो
आदित्य-शशि सा तुम माधवी
चमको नभ में हर दिन
मुबारक हो जन्म-दिन //

मानव सेवा है लक्ष्य तुम्हारा
नहीं भूलना जग है प्यारा
आत्म -सात तुम कर लो
मदर - टेरेसा के सब गुण
मुबारक हो जन्म -दिन //

Sunday, November 20, 2011

तुम बिन


ये जिंदगी ,तुम बिन अँधेरी गली सी लगती है
चाँद कितना भी खिला हो, गोधूली सी लगती है /

तुम उपर से देखकर , मेरा खैर पूछ लेना
मुझे तो अब हर चमन, शूल सी लगती है /

हर शख्स अब अजनबी अनजाने से लगते हैं
मंदिर में अब तो रब भी , बेगाने से लगते है //

Wednesday, November 16, 2011

बसंत आने पर


( बसंत की माया बहुत ही प्रसिद्द है .....देखिये क्या होगा बसंत आने पर )

पत्ता-पत्ता हुआ पल्लवित
फूलों पर बिखरी है आभा
बूढ़ा मन भी युवा हो गया
देख बसंत की माया //

जाग उठी है अब तरुनाई
सुन बसंत की शहनाई
पाकर सुरमई नई कोंपलें
निखर उठी तरुवर की काया //
बूढ़ा मन भी युवा हो गया
देख बसंत की माया //


आ गई रुखसार पर लाली
गाती अब पायल और बाली
सजनी देख साजन मुस्काया
देखकर साली , बहका जीजा //
बूढ़ा मन भी युवा हो गया
देख बसंत की माया //

Monday, November 14, 2011

बिना बसंत नवगीत


विपुल क्षितिज सी तेरी आँखें
कपोल तेरे नवनीत
तुम्हें देख मेरी अधरें गाती
बिना बसंत नवगीत //

अम्बर से लेकर अवनी तक
प्रतिबिम्ब तुम्हारा दिखता
आओ सजनी , पंख लगाकर
समय रहा है बीत //

Saturday, November 12, 2011

तुमसे हम हैं


तेरी यादों की घी का
रोज एक दीया जलता हूँ
दिल के मंदिर में तुम्हें बैठा
रोज एक गीत सुनाता हूँ //

तेरी अधरों को बना पखवाज
रोज एक छंद बनता हूँ
तेरी मुस्कानों के डोर से बंधा
रोज एक पतंग उडाता हूँ //

Monday, November 7, 2011

मुदिता


(पढने से पहले .... मुदिता शब्द का शाब्दिक होता है - मनोवांछित फल प्राप्त होने पर प्रसन्न नायिका या स्त्री )

जब छाती नभ में बदली
और पवन इठलाती
जब फूलों का गंध सूंघकर
तितली मन ही मन मुस्काती
मुदित मोर को देख मोरनी
जब स्वं प्रफुल्लित हो जाती
जब निशा में पूर्ण शशि
प्रचोदित चांदनी फैलाती
ऐसे दृश्य देख मनोहर
ओ प्रिय ! तुम मुदिता बन जाती //

(यह कविता अभिषेक गुप्ता के अनुरोध पर लिखी गई है )

Sunday, November 6, 2011

कसम


मैंने ...
कभी फूलों को देखकर
प्यार न करने की कसम खाई थी //
मगर!
आपकी मुस्कुराहट ने
मेरी कसम तोड़ दी //

Monday, October 31, 2011

आई लव यू


मैंने कितनों को
आई लव यू कहा
बिना उसका मतलब समझे
कहने में क्या लगता है //

लताओं ने मुझसे कहा
मैंने भी कहा "आई लव यू " शाखाओं को
अब उससे लिपटी रहती हूँ //

साँपों ने मुझसे कहा
मैंने भी कहा "आई लव यू " चन्दन के वृक्ष को
अब उसे लिपटा रहता हूँ //

अब मैंने भी समझ लिया है
आई लव यू का मतलब
अब सोचकर /समझकर
किसी एक को बोलूंगा //

Sunday, October 30, 2011

मेरी माधवी


मीठी मुस्कान और हंसी निराली
शांत चित वाली जैसे कोई साध्वी
गंध छिपे हैं जैसे सुमन में
वैसी ही हो तुम,मेरी माधवी //

मैं पौधा ,तुम लता अनजानी
आओ कर ले ,दो बातें रूमानी
हर पथ पर हैं ,कांटे -कटीले
फिर भी तुम गाती राग ताण्डवी //

(ताण्डवी - संगीत का एक राग )

Saturday, October 29, 2011

तुम हो तो !!


तुम हो तो
चहूँ ओर बसंत
तुम नहीं तो
हर मौसम का अंत //

तुम हो तो
मेरी कुछ नहीं चलती
तुम नहीं तो
मेरी डफली बजती //

तुम हो तो
चहूँ ओर है मेला
तुम नहीं तो
हर तकिया गीला //

Saturday, October 22, 2011

प्रेम-नगाड़ा


सुना दो सांसों की सरगम
आज मिला लो उर से उर
बजने दो अब प्रेम नगाड़े
कसम तुम्हें है मेरे हुज़ूर //

उर के घर्षण की ऊर्जा से
खूब बहकता दिल का इंजन
कभी रेंगता,कभी सरपट दौड़ता
बिना लिए अब कोई इंधन //

जब घर्षण में इतनी ऊर्जा है
तो चुम्बन में कितनी होगी
ओ कामिनी ,मेरा कामदेव जगा दो
अपने उर का सोम-रस पिला दो//

Tuesday, October 11, 2011

अब चैन कहाँ


कचनार सी कमर लचीली
और चुम्बक हैं तेरे नैन
नींद नहीं अब आँखों में
न आता दिन में चैन //

बिन पिए अब मैं ,बहकता
बिन कारण के हँसता -रोता
बिन पंख मैं उड़ता रहता
मैं कहता, अब दिन को रैन //

Thursday, October 6, 2011

तेरी आँखें


तुम मेरे नैनों की ज्योति
देख तुम्हें छाती हरयाली
बिन देखे तेरा सुन्दर मुखड़ा
दिल भटकता जैसे बोतल खाली//
तुम बिन मैं ,बिन डोर पतंग
बिन सुरभि जैसे कोई सुमन
खोलो अपने नैन नशीले
मुझे पिला दो पूरी प्याली //




स्वेत कमल पर हो बैठे
दो काले भवरे जैसी आँखें
शशि आई है तुम्हें खोजने
कर दो अब यह रैन मखमली //

कभी हभी गुलज़ार हैं आँखें
कभी पजी तलवार है आँखे
तेरी आँखों में छुपा खजाना
करना है अब मुझे रखवाली //

Wednesday, September 14, 2011

आह भी तुम, वाह भी तुम


आह भी तुम, वाह भी तुम
मेरे जीने की राह भी तुम
छूकर तेरा यौवन-कुंदन
उर में होता है स्पंदन
पराग कणों से भरे कपोल
हर भवरे की चाह तो तुम//

छंद भी तुम,गीत भी तुम
मेरे जीवन के मीत भी तुम
नज़र मिलाकर तुम मुस्काती
हर हंसी कविता बन जाती
हर काजल की स्याह हो तुम //
आह भी तुम, वाह भी तुम//

जब मैं खोलूं अपनी पलक
पा लेता तेरी एक झलक
रूठी हो क्यों, कुछ तो बोल
रब से बढ़ कर तेरा मोल
लाल-रंगीला लाह हो तुम
आह भी तुम, वाह भी तुम//

(चित्र गूगल से आभार )

Wednesday, April 20, 2011

नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी


हम- तुम मिलते थे
दूसरों की नज़रों से बचते -बचाते
कभी झाड़ियों में
कभी खंडहरों के एकांत में
सबकी नज़रों में खटकते थे
फिर एक दिन ...
घर से भाग गए थे
बिना सोचे-समझे
अपनी दुनियाँ बसाने //

नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
देती थी तेरी हर अदा
कितना अच्छा लगता था
दो समतल दर्पण के बीच
तुम्हारा फोटो रख
अनंत प्रतिबिम्ब देखना
मानो ...
तुम ज़र्रे-ज़र्रे में समाहित हो //

कहने को
हम अब भी
एक-दूजे पे मरते है
एक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है //

Monday, April 18, 2011

अब वसंत को देखकर क्या होगा


फूलों के रस में डूबा है तेरा आँचल
बादल के रंग से रंगा है तेरा काजल
अब न वसंत को देखूंगा, न देखूंगा कमल
क्योकि ....
अब तुम खुद लगने लगी हो एक ताज महल //



जुगनुओ के दीप में, गुनगुनाती हुई शाम
तेरी मुस्कराहट पर पीता रहा, जाम पे जाम
अब न चाँद को देखूंगा ,न सुनुगा ग़ज़ल
क्योकि ...
अब राग मल्हार गाने लगे है तेरे पायल //

Thursday, March 17, 2011

जब लेती तुम गलबहियां



अंग- अंग से यौवन बरसे
अँखियाँ दागे फुलझरियां
पक्षी बन मन उड़ जाता
जब लेती तुम गलबहियां //

हर महीना फागुन सा लगता
जब तेरी पायल बजती
हर महीना सावन सा लगता
जब तेरी आँचल उड़ती
चेहरे पर गेसू उड़ती ऐसे
मानों करती है शशि
काले घन से अठखेलियाँ //
पक्षी बन मन उड़ जाता
जब लेती तुम गलबहियां //

अंग-अंग मेरे, तेरे होंगे
सरगम गायेंगी सांसें
संगम होंगें उर के
जब मिल जायेंगी बाँहें
कोयल चहके या न चहके
बगिया महके या न महके
महक उठेगी अमरइयां
पक्षी बन मन उड़ जाता
जब लेती तुम गलबहियां //

Friday, February 18, 2011

शब्दों से श्रींगार करूंगा


ना है गाडी
ना है बंगला
कैसे मैं तुमको प्यार करूंगा
मत घबराना मेरी सजनी
शब्दों से श्रींगार करूंगा //

पहनाऊ मैं, प्रेम का कंगना
और स्नेह का पायल
नभ के तारों से मैं
नित तेरी मांग भरूँगा //
मत घबराना मेरी सजनी
शब्दों से श्रींगार करूंगा //

(चित्र गूगल से साभार )

Thursday, February 17, 2011

काम -हवा


फागुन की इस काम हवा में
मैं क्या बोला,तू क्या बोली
देख तुम्हारा रूप कामिनी
रोज करू एक नया ठिठोली //

रंग लगाउंगा अंग -अंग में
आ जाने दो होली
कोई बिगड़े ,कोई झगडे
या फिर चल जाए गोली //


उर के ऊपर -नीचे होने से
हांफ रही है तेरी चोली
रंग लगाने तेरे तन पर
खड़ी, देवरों की टोली //

Wednesday, February 16, 2011

जब तुम आई मेरे संग


तेरे हंसने से हुआ सबेरा
और मौसम ने बदला रंग
तपती धूप पर छाई बदरा
जब तुम आई मेरे संग //

शबनम मोती बन जाती है
देख तुम्हारा चाल रुमाली
तेरे अधरों से रंग मांगती
रोज पूरब की लाली //

तुम्हें देख , पवन बसंती
नक़ल उतारती और इठलाती
उलझे गेसू देख तुम्हारे
काले बादल भी बलखाती //


रह -रह कर बिजली सी कौधे
तेरे मोतियों की माला
रूप तुम्हारा देख चांदनी
कौन लगाए मुंह पर ताला //

Thursday, February 10, 2011

नीलगगन सी तेरी साडी


नीलगगन सी तेरी साडी
गहने चमके जैसे मोती
आओ प्रिय ,अब साथ चले
हम बनके जीवन साथी //

उपवन के फूलों सी जैसी
खुशबू तेरे बालों की
परागकणों से लदे हुए
क्या कहने तेरे गालों की //


यौवन की चादर में लिपटी
तेरी कंचन चितवन काया
रहकर तेरे संग- संग
अपने को सुवासित पाया //

अधरों का रस अमृत जैसा
नैन तुम्हारे गाए गीत
मखमली देह देख तुम्हारा
कामदेव नित मांगे भीख //

मैं तेरी कूँची बन जाऊ
तू बन जा मेरी कविता
दिन -रात चमकेंगे नभ पर
बन कर शशि और सविता //

Monday, February 7, 2011

लडकियों के चहकने के कारण

कई कारण है ....
लडकियों के चहकने के

वे चहकती है
स्कूल में /कालेज में
जब आँखें चार होती है
शादी की बातों में भी
जब माँ करती है
बात बाबूजी से //

वे चहकती है ....
जब मनचाहा वर मिलता है
नई साडी /नए गहने //

वह चहकती है ...
जीजा की दिल्लगी में
तो देवर के ताने में भी //

वे चहकती है ...
माँ बनने के बाद
और सह लेती है
अनेकों दुखः हँसते हँसते//

मगर हम पुरुष चहकते है
जब पैसे खनकते है //

Tuesday, February 1, 2011

संकल्प

संकल्प ....यानि शपथ
संकल्प ...
क्या यह दिल की आवाज है
या फिर जुबां से निकले छिछले शब्द
क्या संकल्प तोड़ने के लिए किये जाते हैं !

डाक्टर -मानव सेवा का संकल्प लेते है
पुलिस -देश सेवा का
जज -न्याय को निरपेक्ष रखने का
और नेता - जन सेवा का
हम अग्नि के समक्ष संकल्प लेते हैं
जीवन के अंतिम स्टेशन तक साथ चलने की
अपने जीवन -साथी के साथ
यह संकल्प कोई नहीं लेता कि
वह बनाएगा रुपयों का एक पुल !!

फिर यह संकल्प टूट क्यों जाता है
संकल्प नहीं देता इजाजत
बार-बार लीक बदलने की !!

Sunday, January 30, 2011

मेरे खुशियों की फैक्टरी


पुष्पित हूँ
पल्लवित हूँ
सुगन्धित हूँ
सुरभित हूँ
तरंगित हूँ
उत्साहित हूँ
गौरान्वित हूँ
उर्जान्वित हूँ
क्योकि.... तुम
मेरे खुशियों की फैक्टरी हो
और मुझमे ऊर्जा भरने वाली
एक मानवीय मशीन //

Friday, January 28, 2011

अनुरोध


सावन के बादलों
रुको यार ....
थोड़ी सी मेहरबानी करो
थोड़ी सी बरस लो
मेरे प्यार की गलियों में
सोख लो धूल
ताकि निकल सके वो
बिना परदे के
और मैं कर सकू
उनका हुस्ने दीदार //

Wednesday, January 26, 2011

कौन नहीं ललचाए


बादल बरसे घनन -घनन
पायल बाजे छनन -छनन
मस्त पवन में बार-बार ,तेरा आँचल उड़ता जाए
देख तुम्हारा रूप कामिनी, कौन नहीं ललचाए //

हर पत्ता बोले टपक- टपक
हर पक्षी गाए चहक -चहक
गिरती जल-बूंदों से, अधरों की लाली बढती जाए
सूंघ तुम्हारा गंध माधुरी , प्रकृति शोर मचाए//
देख तुम्हारा रूप कामिनी, कौन नहीं ललचाए //

आँखे देखें ,टुकुर -टुकुर
लव हिलते है,सुकुर -सुकुर
देख तुम्हारी काली जुल्फें ,नागिन भी शरमाए
मोर-मोरनी बन मेरा मन,चहुँ ओर दौड़ लगाए //
देख तुम्हारा रूप कामिनी, कौन नहीं ललचाए //

Friday, January 21, 2011

कामना


ख्वाहिस है मेरे मन में ,तेरे अंगना मैं आऊं
करके सोलह श्रींगार , तुमको मैं ललचाऊं
काले बादल से रंग मांग कर,काजल मैं पहनुगी
प्यार का तेरा पंख लगाकर ,आँगन में चहकुंगी //

उमड़-घुमड़ कर बदरा सी मैं,प्रेम रस बन बरसूँ
आलिंगन में बंधकर तेरे ,माँ बनने को तरसूँ
दो बच्चो की माँ बनकर, मैं उनके साथ चलूंगी
ममता और वात्सल्य का दीपक बन,तेरे संग जलूँगी //

Tuesday, January 18, 2011

तुम बिन


तुम बिन मेरी अँखियाँ सूनी
और सूनी हैं बाहें
रुक-रुक कर अब लव हिलते हैं
और साँसें भरती आहें //

लौटो भी अब , जल्दी आओ
अंखियों से रस-जादू बरसा दो
अधरों को अधरों पर रख कर
कोई भ्रमर-गीत नया बना दो //

माथे पर सजती तेरी बिंदी
जीवन-पथ आलोकित करती
दुनिया क्या है ,माया है
तेरी कंगना हमसे कहती //

Monday, January 17, 2011

एक औरत का प्रश्न


सच सच और केवल सच
बोलना मेरे सनम
क्या तुमने मेरे सिवा
किसी और को नहीं चाहा
किसी और देहयष्टि को नहीं छुआ
किसी युवा कामिनी के
अधरों की लाली देखकर
तुम्हारी कामुकता नहीं जगी
तुम्हारा हृदय तरंगित नहीं हुआ
तुमने नयन-मटक्का नहीं किया //


बहुत दिनों से
यह प्रश्न रेंग रहा था
मेरे हृदय में
जब से मैंने
कहते सूना था तुम्हें
अपने एक दोस्त से
घर की मुर्गी दाल बराबर
सुनो ....
अगर देखना चाहते हो मुझे सावित्री
तो तुम्हें भी सत्यभान बनना होगा //

Saturday, January 15, 2011

आलिंगन


चंचल चितवन देख तुम्हारा
अब फूल भी भरती आहें
महक उड़े जब तेरे तन की
आलिंगन को तरसे बाहें //

डगर-डगर और खेत-खेत की
हरियाली गीत ख़ुशी की जाएं
कब आओगी,कब आओगी
प्रश्न पूछती मेरे घर की राहें //
आलिंगन को तरसे बाहें //

Thursday, January 13, 2011

मेरी सजनी


अनजान,अपरिचित थी तुम
जब आई थी मेरे आँगन
खोज रहे थे नैन तुम्हारे
प्रेम ,स्नेह का प्यारा बंधन //

जब आँगन में गूंजी किलकारी
खिल उठे चहु ओर कुमुदिनी
प्रेम का बंधन हुआ कुछ भारी
मनभावन,अनुपम मेरी सजनी //

उज्जवल,धवल,कमल सी कोमल
मख्खन सी फिसलन है उर में
जब सुर में गाए लव तुम्हारे
महक उठे धरा और अवनी//
कितनी अच्छी मेरी सजनी



तपती धूप से हमें बचाती
मधुमय यादों की छाया
सागर की लहरों सा झूमे
तेरी नाक की हमदम नथुनी //
कितनी अच्छी मेरी सजनी

तुम्हारी लम्बी काली जुल्फों से
ठिठोली करे पवन बसंती
मुस्कान तेरी है चन्द्र-किरण सी
तेरी हर बातें हैं रूमानी //
कितनी अच्छी मेरी सजनी
(चित्र मेरी पत्नी की है )

Tuesday, January 11, 2011

अंगड़ाई


तुम मुस्काई ऐसे , जैसे मुस्काया टेसू का फूल
मन की पीड़ा और वेदना,देख तुम्हें गया मैं भूल
लाल-लाल कोमल सी अधरे,झरने का गीत सुनाए
सागर की लहरों सी ऊर्जा , देख तुम्हें मिल जाए //

मंद पवन का झोंका क्या लू ,तेरी अंगडाई ही काफी
बिन पिए नशा सा छाया , ओ मेरे जीवन साथी
हिरन सा अब दौडूगा, पक्षी बन नभ में सैर करूंगा
मत घबराना मेरे प्रियतम ,पग -पग साथ चलूँगा //

Monday, January 10, 2011

कजरारे नैन


भौरे ने कली को छुआ
तो वह फूल बन गई
हवाओं ने मिटटी को छुआ
तो वह धूल बन गई
आपकी कजरारी नैनो ने
देखा मुझे इस कदर
कि वह दिल का शूल बन गई //

मैं और तुम


आ गई एक ताजगी
सुर्ख लाल हो गई कपोलें
खिलखिलाने लगी
तुम्हारे लवों की पंखुड़ियां
मेरे आने के बाद //
ठीक वैसे ही
मानो खिलखिलाने लगी
धूल (गर्द) से लिपटे फूल और पत्ते
एक हलकी बारिश के बाद //

Tuesday, January 4, 2011

अफ़सोस

आज देखा आपका जादू
हरी दूब के
सिरों पर बैठा शबनम
मोती बन रहा था
आपके पैरों के स्पर्श से //

मुझे अफ़सोस है प्रिय !
एक बार मैंने तुमसे कहा था
अपने पैर ज़मीन पर मत रखना
गंदे हो जायेगे
अब तो मैं
बिल -गेट्स से भी ज्यादा अमीर हूँ //

Sunday, January 2, 2011

वालेट पे खतरा


महीने की दो तारीख है आज
गर्मजोशी से हाथ मिलाना
खिलखिलाकर हंसना
और एक मदमस्त चुम्बन
पिछ्ला अनुभव बताता है
आज मेरे वालेट पर ख़तरा है //
क्योकि ...
तुम्हारी ये अदाएं
चुम्बक है नोटों के लिए //

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