
फूलों के रस में डूबा है तेरा आँचल
बादल के रंग से रंगा है तेरा काजल
अब न वसंत को देखूंगा, न देखूंगा कमल
क्योकि ....
अब तुम खुद लगने लगी हो एक ताज महल //
जुगनुओ के दीप में, गुनगुनाती हुई शाम
तेरी मुस्कराहट पर पीता रहा, जाम पे जाम
अब न चाँद को देखूंगा ,न सुनुगा ग़ज़ल
क्योकि ...
अब राग मल्हार गाने लगे है तेरे पायल //
Bahut Khoob...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर श्रृंगार-रस में डूबी कविता,
ReplyDeleteबबन जी तोहार
क्या खूब मन में उठे हिलोर
जब राग मल्हार गाए
सजनी की पायल.
वाह, मदमयी कविता।
ReplyDeleteजुगनुओ के दीप में, गुनगुनाती हुई शाम
ReplyDeleteतेरी मुस्कराहट पर पीता रहा, जाम पे जाम
अब न चाँद को देखूंगा ,न सुनुगा ग़ज़ल
क्योकि ...
अब राग मल्हार गाने लगे है तेरे पायल.....
bhai ji rasbhari...mad bhari.....yaovan bhari...pyar bhari......sangeet bhari.....
waaah kya likha hai bhai ji.
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब ।
ReplyDeleteअब न वसंत को देखूंगा, न देखूंगा कमल
ReplyDeleteक्योकि ....
अब तुम खुद लगने लगी हो एक ताज महल
ग़ज़ब है ग़ज़ब.
बहुत ही खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteऔर उतनी ही लाजबाब ख़ूबसूरती का बखान...
baban bhai basant to aapke bakhaan me hai.
ReplyDeleteaap dharti par aapki kalpna aasmaan me hai.
बहुत सुन्दर, लाजवाब
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