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Monday, April 18, 2011

अब वसंत को देखकर क्या होगा


फूलों के रस में डूबा है तेरा आँचल
बादल के रंग से रंगा है तेरा काजल
अब न वसंत को देखूंगा, न देखूंगा कमल
क्योकि ....
अब तुम खुद लगने लगी हो एक ताज महल //



जुगनुओ के दीप में, गुनगुनाती हुई शाम
तेरी मुस्कराहट पर पीता रहा, जाम पे जाम
अब न चाँद को देखूंगा ,न सुनुगा ग़ज़ल
क्योकि ...
अब राग मल्हार गाने लगे है तेरे पायल //

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर श्रृंगार-रस में डूबी कविता,
    बबन जी तोहार
    क्या खूब मन में उठे हिलोर
    जब राग मल्हार गाए
    सजनी की पायल.

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  2. जुगनुओ के दीप में, गुनगुनाती हुई शाम
    तेरी मुस्कराहट पर पीता रहा, जाम पे जाम
    अब न चाँद को देखूंगा ,न सुनुगा ग़ज़ल
    क्योकि ...
    अब राग मल्हार गाने लगे है तेरे पायल.....
    bhai ji rasbhari...mad bhari.....yaovan bhari...pyar bhari......sangeet bhari.....
    waaah kya likha hai bhai ji.

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  3. वाह ... बहुत खूब ।

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  4. अब न वसंत को देखूंगा, न देखूंगा कमल
    क्योकि ....
    अब तुम खुद लगने लगी हो एक ताज महल

    ग़ज़ब है ग़ज़ब.

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  5. बहुत ही खूबसूरत रचना...
    और उतनी ही लाजबाब ख़ूबसूरती का बखान...

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  6. baban bhai basant to aapke bakhaan me hai.
    aap dharti par aapki kalpna aasmaan me hai.

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  7. बहुत सुन्दर, लाजवाब

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