संकल्प ....यानि शपथ
संकल्प ...
क्या यह दिल की आवाज है
या फिर जुबां से निकले छिछले शब्द
क्या संकल्प तोड़ने के लिए किये जाते हैं !
डाक्टर -मानव सेवा का संकल्प लेते है
पुलिस -देश सेवा का
जज -न्याय को निरपेक्ष रखने का
और नेता - जन सेवा का
हम अग्नि के समक्ष संकल्प लेते हैं
जीवन के अंतिम स्टेशन तक साथ चलने की
अपने जीवन -साथी के साथ
यह संकल्प कोई नहीं लेता कि
वह बनाएगा रुपयों का एक पुल !!
फिर यह संकल्प टूट क्यों जाता है
संकल्प नहीं देता इजाजत
बार-बार लीक बदलने की !!
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badiya
ReplyDeletemahatwpurn ...
ReplyDeleteसंकल्प, विकल्प के सामने हार जाता है।
ReplyDeleteसहज, सटीक एवं प्रभावशाली लेखन के लिए बधाई!
ReplyDeleteकृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
विकल्प के सामने संकल्प हार जाता है।
ReplyDeleteसचमुच बाज़ार और इसके चकाचौंध के बीच जब चारो ओर मूल्य गिर रहे होते हैं... संकल्प टूट जाते हैं.. बढ़िया कविता..
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा.सलाम.
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