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Wednesday, September 14, 2011
आह भी तुम, वाह भी तुम
आह भी तुम, वाह भी तुम
मेरे जीने की राह भी तुम
छूकर तेरा यौवन-कुंदन
उर में होता है स्पंदन
पराग कणों से भरे कपोल
हर भवरे की चाह तो तुम//
छंद भी तुम,गीत भी तुम
मेरे जीवन के मीत भी तुम
नज़र मिलाकर तुम मुस्काती
हर हंसी कविता बन जाती
हर काजल की स्याह हो तुम //
आह भी तुम, वाह भी तुम//
जब मैं खोलूं अपनी पलक
पा लेता तेरी एक झलक
रूठी हो क्यों, कुछ तो बोल
रब से बढ़ कर तेरा मोल
लाल-रंगीला लाह हो तुम
आह भी तुम, वाह भी तुम//
(चित्र गूगल से आभार )
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