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Saturday, October 22, 2011
प्रेम-नगाड़ा
सुना दो सांसों की सरगम
आज मिला लो उर से उर
बजने दो अब प्रेम नगाड़े
कसम तुम्हें है मेरे हुज़ूर //
उर के घर्षण की ऊर्जा से
खूब बहकता दिल का इंजन
कभी रेंगता,कभी सरपट दौड़ता
बिना लिए अब कोई इंधन //
जब घर्षण में इतनी ऊर्जा है
तो चुम्बन में कितनी होगी
ओ कामिनी ,मेरा कामदेव जगा दो
अपने उर का सोम-रस पिला दो//
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सुन्दर रचना , बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteपरिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteदेरी से पहुच पाया हूँ
सुन्दर, श्रंगार पल्लवित।
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई...
सुन्दर
ReplyDeleteदीवाली कि हार्दिक शुभकामनाएं!
वाह-वाह!!
ReplyDeleteबबन जी आपकी समस्त रचनाएं श्रृंगार रस से लबालब हैं. अति सुन्दर .happy deepawali .
ReplyDeleteदीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
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