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Friday, March 30, 2012

बांधों डोरी मुझसे प्यार की


अधरों की लाली , अनार सी
और कमर , तेरी कचनार सी
यू ना बैठो गोरी
बांधों डोरी मुझसे प्यार की //

यू मुस्काती तुम ,जैसे गुलमोहर
देखने , नदियाँ भी जाती ठहर
चला दो मुझ पर छप्पन -छुरी
अंखियों के कजरारी धार की //
यू ना बैठो गोरी
बांधों डोरी मुझसे प्यार की //

Saturday, March 24, 2012

इतिहास

मैं
इतिहास की पुस्तकें नहीं पढता
बाबर और औरंगजेब का इतिहास जानकार
क्यों सा तीर मार लूंगा मैं //

हर सुबह / पहली किरण के साथ
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
अपनी जिंदगी .....
एक जीवंत इतिहास नज़र आती है //

और मुझे
अपना ही इतिहास पढना अच्छा लगता है
इसे पढ़कर
मैं रोज
कुपथ को छोड़
सही राह चुनने में लग जाता हूँ ..//

Monday, March 19, 2012

आपकी आँखें

इन्हें समंदर कहूँ या झील
देख इन्हें, खिल जाता दिल //

इन आखों का रंग है श्यामल
जैसी इसमें खिला कोई कमल //

ये काले बादल है नीला आसमान
देख इन्हें मैं हो जाता बेईमान //

Thursday, March 15, 2012

कहीं कर न दूँ कोई नादानी





मौसम के इस रंगमहल में
लगती तुम परियों की रानी
हवा दीवानी , मेघ दीवाना
देख तुम्हारी भरी ज़वानी //

भींगें गेसू , भींगी कमर
भींग गए ये लाल अधर
भींग गए मखमली रुखसार
देख तुम्हें मैं हुआ तूफानी //

अरुणोदय के श्रींगार से
चम्-चम् करता तेरा तन
छुप जाओ तुम ,ओ कामिनी
कहीं कर न दूँ कोई नादानी ।/

Saturday, March 10, 2012

नज़र घुमा कर यूँ मुस्काना


तेरा नज़र घुमा कर यू मुस्काना
तेरी सासें गाए नया तराना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //

कपोल तेरे हुए लाजवंती
अधरें तेरी हुई रसवंती
बात-बात पर यू शर्माना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //

ताजमहल सी देह तुम्हारी
और मोती है ये उर का पसीना
बात-बात पर कमर लचकाना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //

तेरी चुप्पी है मुझे सताती
चुप्पी में खलनायक लगती
छोडो भी अब गुर्राना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //

Friday, March 9, 2012

आत्म-ज्ञान


मुझमे बुरी आदतें घर कर गई
क्योकि , किताबों के घर में,
घर बनाना मैंने मुनासिब नहीं समझा//

मैं कमज़ोर दिल रह गया
क्योकि , मैंने पिटते नहीं देखा लोहा
लोहार के घर में //

Thursday, March 8, 2012

एक दुटे दिल की आवज


खिलने को तो , कल भी खिलेगा यह गुलाब
मगर ,तुम्हारे इनकार के बाद
दिल की हसरते ,शायद ही अब खिलेगी //

मिलने को तो मिल जायेंगें , अब हर फूल को भवरा
मगर , तुम्हारे इनकार के बाद
मेरी कलम ,शायद ही कभी मिलन-गीत लिखेगी //

Sunday, March 4, 2012

प्यार की पिचकारी में छेद



गुम-शुम क्यों हो बैठी,गोरी
चलो प्यार की फुलवारी में
संभल कर चलना मेरे हमदम
कहीं फंस न जाओ झाड़ी में //

कर ना देना छेद कभी
प्यार की इस पिचकारी में
कही छुट न जाए नमक
प्यार की इस तरकारी में //

मैं कब -तक रहूं अनाड़ी
देखकर तेरी भींगी साडी
हरदम रंग से भरा रखता हूँ
मैं अपनी प्यारी पिचकारी //

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