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Thursday, December 30, 2010

बर्फ गर्म है




बर्फ की वादियों में
धुंआ और भाप
क्या बर्फ गर्म है //

ओठ सिले
आँखें नम
क्या बर्फ गर्म है //

रोड़ेबाजी
गोलियों की तडतड़ाहट
क्या बर्फ गर्म है //

सूखे सेव /अखरोट
और पत्ते विहीन चिनार
क्या बर्फ गर्म है //

सच है ॥
बर्फ की तासीर गर्म होती है //

Wednesday, December 29, 2010

दोस्त खोजने में मदद करे


मेरा दोस्त खो गया है
रुको दोस्त , रुको
इन फिजाओं में ये महक कैसी
यह तो मेरे दोस्त की है
वह यहीं कहीं है
फूलों में खोजना
वह फूलों जैसी ही है
चिड़ियों के झुंडो में खोजना
बुलबुल जैसी चहकती है वह //

Tuesday, December 28, 2010

बेताबे -दिल


ओ मेरे बागे बहार
तुम्हें न देख दिल नाशाद है
ओ मेरे बहारे चमन
कितनी करू सजदा
अब मिलने को दिल बेताब है //

A clay pot having honey is better than a golden pot having poison
not our outer glamour , but our inner virtues makes us valuable...

हवा ! मुझे माफ़ कर दो


ओ री हवा
दोस्त तो हजारों में है
मगर निभाई सिर्फ तुमने //

तुम ही एक हो
जो मेरे घर आती हो
कभी खिडकियों से
कभी दरवाजों से
और प्यार की एक चप्पी दे
नींद में सुला देती हो //

बादलों को भी साथ लाती हो
मेरे घर की बगीया
हरी -भरी करने के लिए //

मेरे फेफड़ों को
मजबूत करने वाली हवा
मैं अपनी दोस्ती ठीक से नहीं निभा रहा
प्रदूषित कर रहा हूँ मैं
आदमी जो ठहरा
हवा का मोल नहीं समझता //

Sunday, December 26, 2010

मोमबत्ती


जन्म क्या हुआ
बच्चे का
समय की एक
जलती हुई मोमबत्ती
प्रभु ने साथ में थमा दी //

अनवरत , अविरल ,अबूझ
समय की मोमबत्ती को
जिसने पहचाना
उसने ही पार की वैतरणी //

Friday, December 24, 2010

याद


तेरी आंखों की मौन भाषा
गुलाबी लवों पर कब आएगी
मुझे क्या पता था
तुम्हारी यादें
रातों की नींद चुरा ले जायेगी //

Thursday, December 23, 2010

नदी (बाल -कविता )


मुझसे तुम बहना सीखो
सीखो जीना -मरना
सभ्यता जन्मी मेरे तट पर
ऐसा सबका कहना //

संकुचित कर मेरे मार्ग को
है मानव ने रोका
बाढ़ , कटाव और प्रदूषण
अब होगा सब सहना //

जीवनदायनी हूँ मैं सबकी
पशु ,पक्षी और मानव
मत फेको कचड़ा मुझमे
नहीं तो होगा रोना //

Wednesday, December 22, 2010

मौसम ने ली अंगडाई ( बाल -कविता )


पीला है अमलतास
लाल-लाल है गुलमोहर
मौसम ने ली अंगडाई
देखो, बच्चो जी भरकर //


पीली सरसों,श्यामल अलसी
कृष्ण की याद दिलाये
शहतूतो पर कोकून देख
खुश हुए है बुनकर //

कोयल बोले कुहू -कुहू
फूलों की लड़ी लगी है
मचल उठे है तितलियाँ
भौरे की गुंजन सुनकर //

Tuesday, December 21, 2010

मौसम का डिमांड है ( बाल -कविता )


छुई -मुई करती जाड़ा आया
कुहासे की उजली चादर बिछाया
घर के पंखे में लग गया ताला
अब धूप का ही होगा बोलबाला
सर्दी पर किसी का नहीं कमांड है
स्वेटर /कम्बल /सूट खरीदो
मौसम का यही डिमांड है //

Sunday, December 19, 2010

गोदावरी --दक्षिण की गंगा


उत्तर भारत में गंगा जिस प्रकार पवित्र है उसी प्रकार दक्षिण में गोदावरी । यह हिन्दुओ का पवित्र तीर्थ स्थल भी है /
इसके किनारे बहुत सारे तीर्थस्थल अवस्थित है /
यह महारास्त्र के त्रिम्बक नामक स्थान से जो की नासिक जिले है ,से निकलती है ...और पांच राज्यों महारास्त्र ,छतीसगढ़ ,ओड़िसा और आंध्रप्रदेश होकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है /
इसकी कुल लम्बाई १४६५ किलोमटर है /

यह कहा जाता है कि गौतम नाम के ऋषि अपनी पत्नी के साथ त्रियम्ब्केशेअर की पहाडियों में रहते थे / ऋषि के पास एक बड़ा गोदाम था जिसमे चावल भरा रहता था /एक दिन एक गाय ऋषि की कुटिया में घुसकर सारे चावल खा गई / जब ऋषि गई को घास खिलाने लगे ...तो वह गाय मर गई / ऋषि गोहत्या के पाप से डर गए /वे गोहत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे /उन्होंने शिव की प्रार्थना की ...कि वे त्रियाम्केश्वर आकर उनकी कुटिया को शुद करे / शिव त्रियम्बक के रूप में प्रगट हुए / और गंगा को लाये /

चुकि गौतम ऋषि की कृपा से गंगा यहाँ आई ....जिसके कारण इस गौतमी भी कहा जाता है /
अगर कहानी दूसरी है तो पाठकों से निवेदन है की वे भी अपना विचार दे /

Friday, December 17, 2010

पता ADDRESS


आपका पता क्या है
मेरा मोबाइल नंबर
9973927974

आदमी का पता क्या है
शैतान /हैवान /बेईमान ...
काश !!!
एक ही पता आदमी का भी होता
इंसान //

किताबे


मैं बेचैन था
क्योकि हवा गुम थी
किताबे ही आगोश में थी
क्योकि आपकी आँखें नम थी //

Wednesday, December 15, 2010

आईना


कमबख्त आईने
तुम भी दगा देते रहे
अब समझा ....
साठ की होकर भी
लोग कमसिन क्यों कहने लगे ?

Tuesday, November 16, 2010

पदचिन्ह

क्यों न हम
भौतिकी का एक प्रयोग करें
लोहे को
चुम्बक से रगड़ो
उसमें आ जाता है
चुम्बकीय गुण ...//

हम भी चुम्बक
बन जायेगे
गर चलेगें
महापुरुषों द्वारा बनाई
पदचिन्हों पर ....//

Monday, November 15, 2010

२०साल पहले की बात याद आई .

आज जब समाचार पत्र में पढ़ा दिल्ली में एक मकान गिरने से ५० आदमी मर गए । तो लगा मैं भी दोषी हूँ एक सिविल इंजिनीयर होने के नाते ।
शुरू
-शुरू नौकरी लगी थी । मेरा एक मित्र दिल्ली की नौकरी छोड़ बिहार सरकार की नौकरी करने आया था । वह दिल्ली नगर निगम के अभियंत्रण सेल में था । एक टीम थी अभियंताओ की ,जिसमे वह भी था । उस टीम का काम वैसे मकानों को चिन्हित करना था , जो कमजोर हो चूके है और किसी भी क्षण गिर सकते है ।
मेरा मित्र बता रहा था कि बिहार सरकार में जो उसे मासिक वेतन मिल रहा है उसे वह दिल्ली नगर निगम के नौकरी में ५ दिनों में कमा लेता था । वस्तुतः वे लोग कमजोर मकान चिन्हित करते थे मगर मकान मालिक रूपये देकर उन्हें ऐसा करने से रोकते । शायद आज भी वही परंपरा पुरे जोर से चल रही हो ।
अब दोष किसका है आप स्वं जान सकते है .

Saturday, November 6, 2010

लोक आस्था का पर्व छठ

बिहार के जन- जन में लोक आस्था का चार दिवसीय पर्व छठ का बहुत ही महत्त्व है । सबसे बड़ी बात जो पर्व से जुडी है ...वह है शुद्धता और पवित्रता । शायद दुनिया में यही एक पर्व है जिसमे शास्वत सत्य सूर्य को जो कि पूरी दुनिया का संचालक है ,को उगते और अस्त होते समय अर्ध्य दिया जाता है ।

चार दिवसीय पर्व की शुरुयात पहले दिन "नहाय -खाय ' से की जाती है ...इस दिन ब्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष गंगा -स्नान कर नए चूल्हे पर बनाया हुआ खाना खाते है । यह चूल्हा मिटटी से बनाया जाता है । इस दिन कद्दू खाने का बड़ा ही महत्त्व है ।
दुसरे दिन 'खरना ' होता है ..पुरे दिन ब्रत करने वाले ( स्त्री -पुरुष ) भूखे रहते है । शाम को नए चूल्हे पर प्रसाद बनाया जाता है । जो की जगह के अनुसार बदलता है । कही गुड का खीर बनता है ...तो कही अरवा चावल और चना का दाल ...ख़ास बात इसमें साधारण नमक नहीं डाला जाता ...इसमें सेंधा नमक का व्यवहार किया जाता है ।
सभी लोग एक दुसरे के यहाँ जाकर प्रसाद को ग्रहण करते है ।
तीसरे दिन पुनः ब्रत करने दिन भर भूखे रहते है .....तथा शाम को अस्त होते सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्ध्य देते है । साथ ही सूप में नाना प्रकार के फलों को रखकर पूजा की जाती है ।
सूर्य के साथ साथ समझिये नदी की भी पूजा होती है ।
पुनः रात भर ब्रत करने वाले खाना नहीं खाते । सब रात -भर जागकर सूर्य -देव के उदय होने का इंतजार करते है । तथा सुबह में उदय्गामी सूर्य को अर्ध्य देकर यह पर्व समाप्त होता है ।

पहले जब मोटर गाडी नहीं होते थे तब लोग शाम को नदी तट पर अर्ध्य देकर रात्री में वही रहते थे ।
इस पर्व के अनेक लोग गीत है । सारे मीट मछली अंडे की दूकान बांध रहती है । युवकों द्वारा पुरे सड़क की सफाई और नदी की सफाई की जाती है । छठ के गीत बहुत ही कर्णप्रिय होते है । बिहार की लोकगायिका शारदा सिन्हा को छठ की गीत गाने और लोक गीत के कारण पद्म श्री मिला है

Wednesday, November 3, 2010

पटना

पाटलिपुत्र ...पटना का पुराना नाम है यह कभी मौर्य साम्राज्य ,मगध साम्राज्य ,नन्द साम्राज्य और शुंग सामरज्यकी राजधानी था पटना और आस-पास की खुदाई तो यही कहानी कहते है पटना शहर के अंदर बसा कुम्हरारऔर राजगीर ,नालंदा की खुदाई से तो यही प्रमाण मिलता है .....खैर मैं आपको पुराने पाटलिपुत्र की सैर नहींकराना चाहता
मैं आपको पटना -दर्शन कराना चाहता हूँ आइये पटना की हृदय -स्थली कही जाने वाली गाँधी -मैदान के पासखड़े हो जाए गांधी मैदान के पश्चिम "बिस्कोमान " भवन शायद पटना की सबसे ऊँची ईमारत है अभी हाल मेंबिस्कोमान भवन के उपर घूमता रेस्तरां खुला है ....बैठकर शहर का नज़ारा लीजिये इस भवन में नालंदा खुलाविश्व्विदय्लय का कार्यालय है साथ ही अन्य महतवपूर्ण कार्यालय है

गाँधी मैंदान के बिस्कोमान भवन से सटा है पटना का प्रसिद्द होटल मौर्या बाहर से आने वाले नेता अभिनेता यहीरुकते है वैसे होटल पाटलिपुत्र अशोक और होटल चाणक्य यहाँ के दुसरे अच्छे होटल में शामिल है

गांधी मैदान के पास ही है पटना का प्रसिद्द "गोलघर "....इसे अनाज का भण्डारण करने के लिए ब्रिटिश शाशन कालमें बनाया गया था ...कुछ ही दुरी पर है ..गांधी -संग्राहलय एक और महत्वपूर्ण ईमारत है " श्री कृष्ण मेमोरिअलहॉल "....यहाँ संगीत -उत्सव /कवि-गोष्ठी /प्रशिक्षण ईत्यादी का आयोजन किया जाता है

अशोक राजपथ ....जो गाँधी मैंदान से पटना साहिब (पटना सिटी ) की ओर जाती है ...उसमे पटना विश्व -विद्यालय
साईंस कालेज और अभियंत्रण कालेज ला कालेज है सबसे बड़ी बात इसी सड़क में गायघाट के पास सिखों के दशमेऔर अंतिम गुरु गोविन्द सिंह जी जन्म स्थली है यहाँ का प्रकाशोत्सव अपने आप में अनूठा होता है

Tuesday, November 2, 2010

चमक उठे हर दीप

तारों की लड़ी लगी है
चमक उठे हर सीप
तम का हार हुआ है
चमक उठे हर दीप ॥

भाग चला दरिद्रता
दिखाकर अपनी पीठ
लक्ष्मी के आने से
आनंदित है सब हित॥

आतिशवाजी के शोर से
गूंजने लगा चहुदिस
लक्ष्मी -गणेश जी आयेगे
घर -घर में नित ॥

Saturday, October 23, 2010

POLLUTION---Where's the solution

We see news daily in the newspaper like...
40 admitted in hospital due to jaundice
3 die due to lungs cancer
fishes die in mexico see due oil leakage in ship
90% readers ignore this news or not ponder on this sitution

All these problems aries due to pollution...or we the logic behind this...is pollution.
it makes our ecology dirty or infectious. it harms our atmosphere/ecology in many ways.....

(1) Black smokes emitting from industrial chimney contains large percentage of carban-dioxide ,carban mono oxide ,nitrogen dioxide ,sulphur dioxide etc।It causes air pollution , it mixes with air,we inhale or breath in this infected air ,our lungs get infected.

(2) excessive use of pesticide /fertiliser makes our surface ,subsurface and underground water polluted । It pollutes the potable and affects....our whole digestive system...and affects aqua animals.

(3)medical wastes also causes air and water pollution both.......(not complete

Tuesday, October 19, 2010

जाति के बिष-वृक्ष में अब फल लगने लगे है ...

अजीब बिडंवना है भारतीय संस्कृति के ....बेहतर तो यही था कि इसे छेड़ा ही न जाए । मगर हमारे राजनेताओ ने अपनी कुशार्ग बुद्धि से इस जाति -संस्कृति से खूब खेला और लोगो के मन /दिल और दिमाग कि उर्वर भूमि पर जाति के विष वृक्ष बोये ।
अब ये वृक्ष बड़े होकर फल देने लगे है । एक तरफ उनका नारा होता है ...जाति -तोड़ो ,देश बचाओ ....फिर दूसरी तरफ आयोग बनवाकर उनकी सामाजिक /आर्थिक अध्धयन कराया जाता है । एक बात समझ में नहीं ...कि आखिर आर्थिक आधार पर लोगो कि जाति बनाने में कौन सा रोड़ा बाधक है ।
मैं समझता था सिर्फ बिहार में जाति का रंग लोगो पर ज्यादा चढ़ा है । मगर आज जब अखवार देखा तो मेरे पावं
तले की ज़मीं खिसक गई । भाई सच में जाति का जो विष -वृक्ष नेताओं ने बोया है ...उसमे अब फल बड़ी तेजी से लग रहे है ।
कभी हिंदी के महान उपन्यासकार "मुंशी प्रेमचंद्र " ने पंच को परमेश्वर कहा था ।
गुजरात उच्च -न्यायालय में एक दलित ने याचिका देकर यह गुहार लगाई है कि उसका केश जिस जज के यहाँ है
वे ब्राह्मण है और वे मेरे साथ न्याय नहीं कर सकेगे अतः मेरा जज बदल दिया जाय । अखवार के अनुसार यह मामला मकवाना जिले का है । मित्रों यह महज एक मामूली समाचार नहीं है .....यह पुरे समाज कि मनो दशा को दिखलाती है कि किस कदर जाति का भुत लोगो के दिलों -दिमाग पर छा रहा है ।
हमारे समाजशास्त्रियो को इस ओर सोचना होगा ..और जाति का जो विष -वृक्ष फ़ैल रहा है ...उसे काटने कि दिशा में एक नए सिरे से प्रहार करना होगा ।
मेरा यह सोच कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे .

Friday, October 15, 2010

रूपये कमाने की तरकीब

प्रशाशनिक पदाधिकारी ने पैसे कमाने के लिए क्लर्क बाबु को अपना दलाल बनाया हुआ था । बेईमानी में भी ईमानदारी का अपना महत्त्व होता है । क्लर्क बाबु सभी से ११०० रूपये की रकम लेता और काम करा देता।

एक दिन साहब की नज़र एक फ़ाइल पर पड़ी । साहब ने अपनी कलम वापस अपने पाकेट में कर ली । कहते है ...लड़की वालों से दहेज़ और जनता से घुस के पैसे उनकी औकात देखकर मांगी जाती है । साहब ने क्लर्क से कहा ,"इस काम के लिए पुरे पांच हज़ार लगेगें " । क्लर्क ने सहृदयता से कहा ," जैसी ईच्छा "

प्रशाशनिक पदाधिकारी ने अपनी कुशाग्र बुद्धि का भरपूर उपयोग किया । क्लर्क से कहा ," कल पार्टी को बुलाना और मेरे चैम्बर की खिड़की पास उसे खड़ा कर देना तथा उसकी फाइल मेरे टेबल पर रखना " ।" जी ,सर " कहते हुए क्लर्क ने स्वीकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया ।
दुसरे दिन क्लर्क ने पार्टी को खिड़की के पास खड़ा कर दिया तथा फ़ाइल को साहब के टेबल पर रखा । पार्टी खिड़की से साड़ी गतिविधि देख रहा था ।
फ़ाइल देखते ही साहब आग -बबूला हो गए । उन्होनें जोरदार आवाज में क्लर्क से कहा, "सस्पेंड होना है क्या ?
मुझे भी कराएगा और खुद भी होगा"। यह कहकर उन्होनें फ़ाइल टेबल पर से फेंक दी ।

क्लर्क भी भौचक रह गया । अचानक साहब का यह तेवर ! शाम को उन्होनें अपने आवास पर क्लर्क को बुलाया और कहा ," पुनः उस पार्टी से मिलो और डिमांड करो "
और सच में ,साहब की यह तरकीब काम आई । पार्टी भी भयभीत था । तुरंत ही पांच हज़ार देकर फ़ाइल पर हस्ताक्षर करवा लिया ।

Wednesday, October 6, 2010

प्रकृति से युद्ध

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले का अनुमंडल है ..बगहा .करीब एक लाख की आवादी । नेपाल और उत्तरप्रदेश की सीमा पर बसा हुआ । बात २००६ की है ..माह जुलाई अगस्त । वाल्मीकिनगर से आनेवाली गंडक नदी , बगहा-गोरखपुर रेल -सड़क पुल छितौनी से गुजरने के बाद दो उप धाराओ में बट जाती है । बगहा की तरफ जो उपधारा आती है उसे "रोहुआ " नाला कहते है ।
नदियाँ अपने साथ सिल्ट ( मिटटी के बहुत ही महीन कण ) लाती है और उसे जहां -तहां बेतरतीब रूप में ज़मा
कर देती है ,जिसके कारण नदियों के बहाब -मार्ग में परिवर्तन होते रहता है ।

बगहा -वाल्मीकिनगर पथ N H 28 बी से रोहुआ नाला ...बगहा के शास्त्रीनगर महल्ला से करीब १००० फिट दूर था ।
गंडक नदी में ,सिल्ट के बेतरतीब रूप में जमा होने के कारण इस वर्ष नदी के पुरे जलश्राव का ९० % रोहुआ नाला की तरफ मुड गया था । नदी को पुरे पानी को ढोने के क्रम में नदी अपना किनारा काटने लगी।

नदी का उपरी जलस्तर प्राकृतिक भूमि (natural soil लेवल) से लगभग तीन फिट नीचे थी ।
जैसा की जल संसाधन विभाग में होता है , एक कार्यपालक अभियंता के नेतृत्व में अभियंताओं की एक टीम नदी का कटाब रोकने हेतु लगा दी गई थी । नायलोन क्रेट में सीमेंट के खाली बोरे में ईट के टुकड़े भरकर कटाव को रोकने का प्रयास जारी था । मगर नदी थी ..मानने का नाम नहीं ले रही थी ।

कटाव को देखते हुए ...नागरिकों ने राजमार्ग को बन्द कर दिया । बगहा के तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी श्री अभय कुमार सिंह( भा ० प्र ० सेवा ) और खंड विकास अधिकारी श्री प्रदीप गुप्ता (बिहार प्र ० सेवा ) ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जिला पदाधिकारी श्री मिहिर कुमार सिंह को एवं जल संसाधन विभाग को त्राहिमाम सन्देश भेजा । दोनों पदाधिकरियोम के आश्वाशन के बाद बन्द वापस लिया गया ।

दुसरे दिन स्वं ज़िलापदाधिकारी बेतिया से रेलगाड़ी द्वारा बगहा आ कर कटाव स्थल का दौरा किया गया । उनके साथ जल संसाधन बिभाग के वरीय अभियंता भी थे । जिनमे मुख्य अभियंता श्री श्यामनंदन प्रसाद भी थे । नदी का कटाव बहुत तेजी से सड़क की तरफ बढ़ रहा था । नदी के किनारे पर बना एक सामुदाइक भवन एवं पीपल का एक विशाल वृक्ष नदी के गर्भ में सब पदाधिकारियो के समक्ष समा गया।

नदी के रौद्र रूप से मैं भी पहली बार परिचित हो रहा था । लोगो में दहशत का माहौल था ।जितनी मुह उतनी बाते । कोई कहता कटाव वाले स्थल पर पापियों का अड्डा है ,कोई कहता जान बुझकर पानी को मोड़ दिया गया है । अखबारों में खबर छाप जाने के कारण दुसरे जगहों से भी लोग यहाँ पहुचने लगे .

मुख्य अभियंता एवं जिला पदाधिकारी द्वारा जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव श्री अशोक कुमार से कटाव स्थल से ही बात की। उनके द्वारा बताया गया कि स्वं बाढ़ -विशेषग्य श्री नीलेंदु सान्याल के साथ कटाव स्थल का दौरा करेगे ।

इसी बीच बगहा के किसी वकील ने पटना उच्चान्यालय में लोक हित याचिका दायर कर दी कि बाढ़ कटाव के कार्यो में स्थानीय प्रशासन और अभ्यान्ताओ द्वारा शिथिलिता बरती जा रही है । पटना हाई -कोर्ट ने अनुमंडल पदाधिकारी और न्यायिक्पदाधिकारी से अब तक किये कार्यो के बारे में जानकारी मांगी गई । हाई कोर्ट संतुष्ट हो गया ।

दुसरे दिन बगहा कचहरी मैदान में राज्य सरकार के हेलिकोप्टर से जल संसाधन के प्रधान सचिव और बाढ़ विशेषग्य श्री सान्याल बगहा पहुचे ।

श्री सान्याल ,तुरंत कटाव स्थल पहुंचकर नदी के धारा के वेग को मापा । उन्होंने बताया कि नदी के पानी का वेग इतना ज्यादा हाई कि खाली सीमेंट के बुरे में ईट के टुकड़े भर कर देने से कटाव रोकने का प्रयास निर्थक होगा ।
उन्होंने निन्म सुझाव दिए

१)...लोहे कि जाली 10' x 5' x 2' माप का में पत्थर रखकर नदी के बेड में डाला जाए । एक पत्थर कम से कम ५० किलो का हो
(२)... जहा कटाव ज्यादा था, नदी के बेड में सखुआ के बल्ले गाड़ने को कहा गया ।
(३)... रात -दिन कार्य जारी रखा जाए , तीन पालियों में काम कराया जाए ।

तुरंत मिर्जापुर ( उत्तर प्रदेश ) से लगभग ५० ट्रक पत्थर ढोने में लग गए । एक दल रांची से बल्ले लाने चला गया ।
कटाव एवं सुरक्षात्मक कार्य २४ घंटे ज़ारी रखा गया । एक पाली में पांच ईंजिनीयर थे ....मैं भी एक पाली का नेतृत्व
कर रहा था ।

तीन दिनों तक अहर्निश कार्य कराने के बाद नदी कुछ शांत हुई ...और अंततः हमलोग बगहा को बचने में समर्थ हुए । मगर हमलोग लगभग एक सौ पक्के मकान और २०० कच्चे मकान नहीं बचा सके ।
प्रकृति से युद्ध का यह मेरा पहला अनुभव था ।

Monday, October 4, 2010

विज्ञान और भगवान्

खोज ली हमने
तरह -तरह के रोगों के जनक
विषाणुओ और जीवाणुओ को
सूरज की लालिमा और
तबाह करने वाले चक्रवातों के
कारणों को भी ॥

बाँझ महिलायों को पुत्रवती बनाने का
रहस्य खोज लिया , हमने
पानी में /सूक्ष्मतम कनों में
छिपे ऊर्जा को खोज लिया हमने ॥
सूर्य की रौशनी / हवा के झोंके को
बदल देते है हम बिजली में ॥

कृत्रिम हृदय बना लिया हमने
और तो और
उस जीन को भी खोज लिया हमने
जो चमरियो का कसाब ढीला करती है
हम अग्रसर है ...
आयु का शतक लगाने की ओर ॥

ऐसा कर ....
एक तरफ हम चुनौती देते है
ईस्वर की सृष्टी को
कहते है ...ईश्वर नहीं है
तो दूसरी तरफ
ईस्वर के नाम पर रोज लड़ते है॥

Saturday, October 2, 2010

जब गेंडे को नशीली सुई दी गई


वैसे जानबरो के चरित्र और क्रिया कलापों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है , ना ही मैं इस क्षेत्र से जुड़ा हूँ
वैसे जानबरो के बारे में अधिकाधिक जानकारी लेने और पढने में मेरी पूरी दिलचस्पी है ।

जमशेदपुर ,जिस टाटानगर भी कहते है ,अपने स्टील कारखाने के कारण पुरे विश्व में जाना जाता है । पूरा जमशेदपुर
घने जंगलों एवं पहाड़ो से घिरा है । सिल्वर -जुबली पार्क और डिमना -लेक यहाँ के प्रमुख प्रयटक स्थल हैं । डिमना -लेक में जमा अथाह जल राशि को शोधित कर जमशेदपुर शहर में पीने का पानी उपलब्ध कराया जाता है . जमशेदपुर से कुछ ही दूर है ..." दलमा अभ्यारण्य " जहां हाथी बहुतायद में पाए जाते है । मेरे मित्र श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह सन २००२ में इसी अभ्यारण्य में रेंज -ओफ्सर के रूप में पदस्थापित थे । उनके अनुरोध को मैं नहीं टाल सका । उनकी sarkaari गाडी में सवार हो उनके साथ मैं दलमा -अभ्यारण्य देखने निकल पड़ा ।

प्रवेश के स्थान पर मैंने पतले तार .पिलर में बंधे हुए दूर दूर तक देखे । मैंने उनसे इन तारों के बारे में पूछा । उनके द्वारा बताया गया कि प्रायः सभी अभ्यारण्य की सीमाए खुली होती है और जानवर निर्भीक हो कर रात में /दिन में
आस -पास के गांवों में प्रवेश कर जाते है तथा किसानो की फसलों को बर्बाद कर देते है । हालाकि ऐसी स्थिति में किसानो को मुआबजा देने का प्राबधान है फिर भी सरकारी लम्बी प्रक्रिया में कौन उलझाना चाहता है । इन तारों में हलकी मात्रा में बिजली प्रवाहित की जाती है , जिससे जानवर उसके आगे नहीं जा पाते ।

ठीक इसी तरह "वाल्मीकिनगर बाघ अभ्यारण्य " और नेपाल की " चितवन -नेशनल पार्क " की सीमाए
खुली है तथा वहाँ किसी प्रकार के बिजली के तारों का इस्तेमाल नहीं किया गया हैं । फलतः नेपाल के जानवर और भारतीय जानवर इन्सानों की तरह ही बेरोक -टोक सीमा पार करते है ।

वर्ष २००४ में जब मैं वाल्मीकिनगर में था , भीषण बरसा के साथ , नदी की जल -प्रवाह के सहारे एक मोटा -ताजा गेंडा बह कर वाल्मीकिनगर से सटे नेपाल के त्रिवेणी बाज़ार में आ गया एवं गाँव वासियों को अपने सींगों से प्रहार कर उपद्रव करने लगा।

जब तीन -चार दिनों के बाद भी गेंडा वापस जंगल में नहीं लौटा ,तब लोगों ने इसकी शिकायत वन्य -प्राणी अभ्यारण्य के पदाधीकरियो से की । तत्पश्चात एक बड़े पिंजड़ा नुमा ट्रक पर सवार हो वन विभाग नेपाल के पदाधिकारी आये । उन्होनें दूरबीन लगे रायफल की मदद से एक नशीली सुई गेंडे को निशाना साधकर लगाया । सुई लगने के उपरांत गेंडा शांत चित हो गया , जिसे तुरंत ही कर्मियों ने जालीदार पिंजड़ा नुमा ट्रक में डाल दिया
फिर उसे घने जंगलों में छोड़ दिया गया ।

एक चीज जो मैंने अनुभव किया कि चिड़ियाखाना में बन्द और खुले अभ्यारण्य में विचरने वाले जन्तुओ
कि ताकत में ज़मीं -आसमान का अंतर होता है ।

Thursday, September 30, 2010

गोल्डीफोक्स जोन क्या है ?

पृथिवी से बाहर जाकर रहने की तमन्ना ने मनुष्यों को बहुत से खोज करने के अवसर दिए ... चाँद और अन्तरिक्ष के बाद मनुष्यों ने पृथ्वी के सौर - मंडल के बाहर एक दुसरे तारे के सौर -मंडल में एक नए ग्रह " गोल्डीफोक्स ज़ोन " की खोज कर ली है ॥ कलिफ़ोर्निया विश्व -विद्यालय ने इसकी घोषणा की गई है ॥

यह ग्रह पृथिवी के आकार का एवं पृथिवी के द्रब्यमान का तीन गुना है । खगोलविद स्टीवन वोग्ट कहते है
..." हमारे निष्कर्ष यह कहते है कि यहाँ तरल मौजूद है और मानव जीवन के अनुकूल है "....यदि इस दल के निष्कर्षो को अन्य वैज्ञानिकों कि स्वीकृति मिल जाती है तो यह अब तक खोजा गया ऐसा पहला ग्रह होगा ,जो पृथिवी से बहुत हद तक मिलता जुलता है
( हिन्दुस्तान से साभार )

Tuesday, September 28, 2010

ग्रौस नॅशनल हैपीनेस क्या है ?

वैसे तो किसी भी देश और उसके नागरिकों की समृद्धि ,उन्नति मापने के अनेकों इंडेक्स ( सूचकांक ) है ..जिनमे प्रमुख है ...सकल घरेलु उत्पाद ,प्रति व्यक्ति आय ,बाड़ी - मास इंडेक्स ..ईत्यादी ।

भारत का पडोसी तथा सार्क देशों का सदस्य हिमालय की तराई में बसा छोटे से देश " भूटान " के प्रधान मंत्री श्री जिग्मी वाई ठीनले ने दिनाक २६-९-२०१० को बोधगया ( बिहार ) का भ्रमण किया । उन्होंने विश्व बिरादरी के समक्ष "ग्रौस नॅशनल हैपीनेस" नाम का एक नए सूचकांक का विकास मोडल पेश किया है । इस इंडेक्स में देशवाशियो की देश के प्रति भक्ति ,उनकी ख़ुशी और देश में धर्म के प्रति आस्था जैसे मानकों को शामिल किया गया है ।

भूटान एक बौद्ध देश है तथा बोधगया (बिहार ) में ,जो भगवान बुद्ध के ज्ञान -प्राप्ति स्थल के कारण पुरे विश्व में विख्यात है , इस देश का एक भव्य मंदिर है । भूटान के प्रधान -मंत्री ने बताया कि वे पश्चिमी देशों कि तरह विकास की अंधी -दौड़ में शामिल नहीं है । भूटान के विकास का पैमाना " धर्म ,आचार ,संस्कृति ,तथा पर्यावरण " की सुरक्षा से जुदा है । अध्यात्मिक ,वैज्ञनिक और भौतिक विकास भी साथ -साथ समन्वय स्थापित कर चलते है

धन्य है नन्हा सा भूटान । एक हम है कि विकास कि आधुनिकता को लेकर जिंदगी को रेस में बदल दिया है तथा अपनी शादाब्तियो पुराणी संस्कृति ,लोकाचार , अध्यात्म , योग नृत्य पर्यावरण को टाटा -बाय -बाय कह रहे है ।

Friday, September 24, 2010

कृषि संबंधी प्रशिक्षण गाँव में हो

मुझे पटना स्थित "जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान " में सिंचाई जल के समुचित उपयोग विषय पर प्रशिक्षण हेतु चुना गया था । पांच दिवसीय प्रशिक्षण में कृषि क्षेत्र में सिंचाई जल के समुचित उपयोग पर विस्तार से चर्चा की गयी ।

प्रायः लोगो में / किसानों में ऐसी धारणा है कि फसलों में जितना पानी दो ,उतना ही अच्चा । परन्तु बात ऐसी नहीं है । प्रत्येक फसलों के लिए पानी की मात्र निर्धारित है । ज्यादा या कम पानी देने से फसल की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ता है ।
नाईट्रोजन ,फोस्फोरस और पोटाश , तीन ऐसे तत्व है जिन्हें हर पौधे कोजरुरत होती है । मगर पौधे वायुमंडल में उपलब्ध को
नाईट्रोजन उसी रूप में ग्रहण नहीं कर पाते । पौधे नाईट्रोजन को नाईट्रेटके रूप में ग्रहण करते है और इस कार्य में " राईजोबियम " नामक बैकटेरीया हमारी मदद करता है । ये बैकटेरीया फलीदार पौधों जैसे चना ,मटर ,मूंग ईत्यादी के जड़ों की गाठों में पाया जाता है

हमारे किसान पढ़े -लिखे नहीं होते ,जिसके कारण वे फसल चक्र के महत्त्व को नहीं समझ पाते वे हर वर्ष धान और गेंहू की फसल लगाते है और
नाईट्रोजन के लिए भारी मात्रा में यूरिया का प्रयोग करते है । अगर धान के बाद चना ,मूंग ,मटर की एक फसल ले ली जाये तो वह भूमि नाईट्रोजन से संपोषित हो जायेगा और किसानों को कम लागत में अच्छी उत्पादकता मिलेगी ।
एक तीसरी बात जो मुझे सबसे अच्छी लगी ,वो यह है की लोग यूकिलिप्टस के पेड़ जहाँ -तहां लगा देते है
यूकिलिप्टस बहुत तेजी से भूमि जल खीच कर वातावरण में भेजता है .इस पौधे को वैसी जगह लगाना चाहिए ,जहां जल -जमाव हो या भूमिगत जल -रेखा ( वाटर -टेबले ) बहुत ऊपर हो ।

ऐसे प्रशिक्षण की आवश्यकता गाँव -गाँव में है । गाँव में अब बड़े -चौड़े विद्यालय है , जिनमे प्रशिक्षण कार्य देना बहुत ही आसान है । गाँव में प्रशिक्षण आयोजित कर जहाँ हमलोग एक तरफ कृषि के विकास की बात करेगे ,वही दूसरी ओर किसानों की समस्याओ से भी रु-ब -रु हो सकेगे । साथ ही बंजर हो गई भूमि की मिटटी जाँच एवं उसे खेती योग्य उर्वर जमीनमें बदलने की प्रक्रिया किसानो के समक्ष कर इस भावना को जागृत करेगे कि अगर कृषि ,वैज्ञानिक ढंग से की जाये तो कभी भी हानी नहीं होगी । इसतरह कृषि से विमुख होने वाले किसान भाइयो /मजदूरों को हमलोग शहरों की भीड़ में जाने से रोक सकेगे ।
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Friday, September 17, 2010

आइए, वाल्मीकिनगर से पोखरा चलें

वाल्मीकि नगर से ही नेपाल के प्राकृतिक सौन्दर्य का दर्शन होना प्रारंभ हो जाता है , मैं अपने को रोक न सका । वाल्मीकिनगर से बराज से पुल पार करने के बाद पहाड़ो की तलहट्टी में बसा है नेपाल का त्रिवेणी धाम । यहाँ से नेपाल के काठमांडू ,पोखरा ,बुटवल इत्यादि शहरों के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है ।
नेपाल और भारत के अंतरास्ट्रीय समय में १५ मिनट का अंतर है .मतलब अगर भारत में ९.४५ बजे है तो नेपाल में १० बजेगा । नेपाली समयानुसार सुबह पांच बजे से बसे चलना प्रारंभ हो जाती है।
मैंने सुबह वाली बस पकड़ी। जुलाई २००८ की बात है लगभग २५ किलोमीटर चलने के बाद 'बरटांड" नामक स्थान पर बस कुछ देर के लिए रुकी । वास्तव में बस अब "महेंद्र राजमार्ग " पर चलने के लिए तैयार थी । जानकारी के लिए बता दू ...नेपाल में महेंद्र राजमार्ग और त्रिभुवन राजमार्ग दो बहुत ही महत्वपूर्ण सडकें है ।

बस अब महेंद्र राजमार्ग पर दौड़ रही थी । मैं पहलीबार नेपाल की वन संपदा देखकर दंग रह गया । सखुआ के मोटे -मोटे वृक्ष मैंने पहलीबार देखा था ..जो करीब ५० -६० फिट की ऊँचाई तक एकदम सीधा था । दोनों तरफ पहाड़ो का अनुपम सौन्दर्य और हरीतिमा मन को मोहने के लिया काफी था । मैंने सड़क के किनारे लगे सुचना पट्ट को पढ़ा .... मेरी बस "दाउने नेशनल पार्क" से होकर गुजर रही थी । एक जगह बस रुकी .....शायद सड़क पर कुछ मलवा पड़ा था । बरसात के दिनों में भू -अस्ख्लन आम बात है । यहाँ पर पहाड़ लगभग सीधी थी ...करीब ३०० फीट( १०० मीटर ) ऊँचा ।

झरने जिनका नाम सुनते ही हमें देखने की इच्छा होती है । एक बार मैं सिर्फ झरने देखने के लिए मध्य -प्रदेश के पचमढ़ी नामक स्थान गया था । मगर मैंने असंख्य झरने सडकों के किनारे देखे ....जिसका पानी सड़क पर ही बह रहा था । पानी इनता साफ़ मानो बोतल बंड पानी की तरह । सड़क के किनारे होटलों में इसी पानी का प्रयोग हो रहा था ....गाँव के लोग इस पानी को जमा कर उपयोग में लाते है ।
वाल्मीकिनगर में हम जिसे गंडक नदी कह रहे थे वह नेपाल में नारायणी नदी के नाम से जाना जाता है ।

लगभग नौ बजे मैं नारायण घाट पहुंचा.नारायणी नदी के किनारे यह बसा शहर बहुत ही खुबशुरत है । यहाँ तो प्रयटको का मानो मेला लगा था .दुसरे मार्गों की बसों को भी काठमांडू जाने के लिए यहाँ आना पड़ता है,पूर्वी नेपाल से आने वाली बसें । यही से पहाड़ो की चढ़ाई मुख्य रूप से प्रारंभ होती है । बस के चालक द्वारा अनुरोध किया गया कि सब कोई भोजन कर ले । बहुत लोग बस से उतर कर छोटी गाडी टाटा की रिन्गर पकड़ ली । मुझे सौन्दर्य को देखना था । मैंने बस पर बैठना उचित समझा । नेपाल के छोटे -से छोटे होटल में भी आपको बियर और शराब उपलब्ध होती है । पीने वालो की तो पूछिये मत । शायद अधिकांश लोग मस्ती करने ही नेपाल जाते है ।

बस खुल चुकी थी । एक तरफ २००० फिट नीचे नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ १००० फिट ऊँचे पहाड़ ।
नदी के दूसरी तरफ कुछ गाँव नज़र आ रहे थे । लोगो को सड़क तक आने के लिए ऋषिकेश में बने लक्ष्मण झूले जैसे पुल बने थे । खेतों में धान और मकई के पौधे साफ़ नजर आ रहे थे । झरने देखते -देखते मानो मन थक गया ।
नदियों का ढाल बहुत ही ज्यादा है । इनमे छोटे -छोटे बाँध बनाकर खूब पनबिजली बनाई जा सकती है । सड़क के किनारे तो मुझे कही नहीं मिला । हां ...पत्थरो को तोड़ने वाले क्रशर मिले .... पत्थरो की गिट्टी और बालू से ईट बनाने के बहुत से कारखाने मिले । रास्तों में कंक्रीट के ईट का उपयोग कर बनाए गए मकान भी दिखे ।

तिम्लिंग के बाद सड़क दो भागों में बट गई ...एक भाग काठमांडू की ओर दूसरी पोखरा की तरफ । कुछ दूर तक मैदानी भाग आया ..बस सरपट दौड़ रही थी । अब मैं पोखरा पहुँचने ही वाला था । पोखरा बस स्टैंड पर बस रुकी
मुझे पूर्व से ज्ञात था ....पोखरा का महतवपूर्ण स्थल झील के किनारे वाली मुख्य सड़क पर बने होटलों का किराया बहुत अधिक होता है । अतः मैंने झील से लगभग ५०० मीटर दूर अपना होटल लिया । ( क्रमशः )

Thursday, September 16, 2010

आईये वाल्मीकिनगर बाघ अभ्यारण्य चलें

सहसा मेरी नज़र उस विज्ञापन पर पड़ी ,जिसमे क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी बता रहे थे ॥" सिर्फ १४११ बचे है "
उसके नीचे एक बाघ का फोटो ॥
जिन बाघों से हमारे दादा -दादी हमको डराते थे ,आज वे स्वम विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चूके है ॥
भारत में बाघों के संरक्षण एवं प्रजनन को लेकर " टाईगर प्रोजेक्ट " की शुरुयात सन १९७३ में की गई । अब तक देश भर में २७ बाघ अभ्यारण्य काम कर रहे है ॥ वर्ष २०००-२००१ तक भारत के कुल ३७,७६१ वर्ग किलोमीटर में यह फैला हुआ है ।
मुझे कहते हुए गर्व हो रहा है कि बिहार में भी एक बाघ अभ्यारण्य है । यह बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बगहा अनुमंडल में अवस्थित है । इसे " वाल्मीकिनगर टाईगर प्रोजेक्ट " के नाम से जाना जाता है । उत्तर प्रदेश ,नेपाल और बिहार कि सीमा पर अवस्थित वाल्मीकिनगर जैव -प्रयटन के लिया विख्यात है ।यह पश्चिम चंपारण जिला के मुखायल बेतिया से १२० किलोमीटर दूर अवस्थित है । नजदीकी रेलवे स्टेशन बगहा है ..जो कि मुज़फ्फर पुर -गोरखपुर रेल -खंड का एक प्रमुख स्टेशन है । यहाँ रुकनेवाली महत्वपूर्ण गाडियों में सप्तक्रांति एक्सप्रेस ,मुजफ्फरपुर -देहरादून ,पुवांचल एक्सप्रेस ..मुख्य है । बगहा से वंलिकिनगर के लिए बसे और प्राइवेट टैक्सियाँ चलती है । दुरी करीब ४५ किलोमीटर है ,जिसमे ३० किलोमीटर का रास्ता घने जंगलों से होकर जाता है । फलदार वृक्षों की कमी है फिर भी बंदरों के झुण्ड आपको सडकों पर उछल- कूद करते मिलेगें ।
बगहा से वाल्मीकिनगर जाने के क्रम में नौरंगिया नामक स्थान के बाद मुख्य सड़क किनारे ..एक स्थान है जहाँ स्थानीय निवासी पूजा करते है ,वहाँ के पेड़ों पर चम्गादरो का एक झुण्ड रहता है ..ये चम्गादर लगभग ३-४ किलोग्राम के है ..इन्हें कोई नहीं मारता ।
वाल्मीकिनगर में गंडक नदी पर बराज बना है ,बराज पर बने पुल से नदी पार कीजिये ,आप नेपाल की धरती पर अपनेआप को चहलकदमी करते हुए पायेगे । गर्मी कितनी भी हो ,अगर आप बराज पर आ गए तो बराज के अपस्ट्रीम में बने जलाशय से होकर गुजरनेवाली शीतल हवाए आपका स्वागत करेगी और इस सुखद एहसास को आप भुला नहीं पायेगे ।
अगर दिन साफ़ हो तो आपको बराज से हिमालय की धवल चोटियाँ साफ़ नज़र आएगी । लगभग चार से पांच शाम के समय जब सूर्य की किरणे वर्फ की चोटियों पर तिरछे पड़ती है तो ..श्वेत धवल चोटियाँ का इन्द्रधनुषी परिवर्तन अवर्णनीय है ।
प्रसंग वश मैं यहाँ बता देना चाहता हूँ कि मैं २००५ से २००९ तक दोन शाखा नहर के शीर्ष -भाग का अवर -प्रमंडल -पदाधिकारी के रूप में कार्यरत था ...दोन शाखा नाहर के द्वारा नेपाल -पूर्वी -नहर को पानी दिया जाता है । और मैंने इन प्राकृतिक नजारों का भरपूर सेवन किया है ।
वाल्मीकिनगर में ठहरने के लिए बिहार राज्य प्रयतन विकास निगम का होटल " वाल्मीकि विहार " अवस्थित है जहाँ लगभग २५० ( दो सौ पचास ) रूपये प्रतिदिन का किराया लगता है । साथ ही जल -संसाधन विभाग का विश्राम गृह तथा बिहार राज्य हैड्रो पवार निगम का विश्राम गृह उपलब्ध है ।
जिन्हें जंगल और उसकी सुन्दरता से प्रेम है ,उन्हें यह जगह गले लगाता है । बीच जंगलो में नर देवी का मंदिर और जटाशंकर का मंदिर मन को मोह लेता है । एक किलोमीटर पैदल चलने की ईच्छा आपको नेपाल के चितवन जिले के घने जंगलों में अवस्थित वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में ले जायेगी । कहते है माता सीता ने लंका से लौटने के बाद अपना समय इन्ही जंगलों में गुजारा था तथा लव -कुश का जन्म भी यही हुआ था । नेपाली वास्तु कला से परिपूर्ण माता जानकी एवं वाल्मीकि ऋषि का आश्रम देखकर आप मन्त्र -मुग्ध हो जायेगे । मंदिर के पुजारी श्री शेकर द्विवेदी आपको मंदिर एवं पुराने यादगार प्रतीकों को बड़े ही धैर्य -पूर्वक बताते है । वाल्मीकि आश्रम तक जाने के क्रम में दो नदियाँ "तमसा " एवं "सोनहर" आपके चरण धोएगी । गोल -गोल पत्थरो के बीच नदी की बहती जल- धारा आपको रंग -विरंगे शालिग्राम चुनने पर विवश कर देगी ।
भारत -नेपाल के खुले सीमा का लाभ अराजक तत्व न उठावे ..इसलिए सीमा शस्त्र बल की १२ वी बटालियन यहाँ तैनात है ...रोज सुबह जंगलों में इनका परेड देखना भी अच्छा लगता है ।

गरीबी रेखा कौन सी बला है

शुरू में मुझे भी नहीं पता था कि ये गरीबी रेखा क्या होती है ....शायद ज्यामिति की तरह कोई रेखा हो ...
मगर जब मुझे इस सम्बन्ध में काम करने का मौका मिला ..तो सारी बाते स्पस्ट हो गई ॥
दरअसल, सरकारी योजनाओ के कार्यान्वयन में हो रही दिककत्तो को दूर करने के लिए यह अनिवार्य था ॥
.....गरीबी रेखा के निर्धारण के क्रम में कुल १३ सवाल जनता से पूछे जाते है ॥
कुछ सवालों का व्य्योरा निम्न प्रकार है
१) आप कितने भूमि के हक़दार है ॥
२)कितनी भूमि सिंचित है ॥
३) आप कहाँ तक पढ़े है
४)आप साल में कितने कपडे पहनते है ..इत्यादि
प्रत्येक सवाल के चार विकल्प है और पाच नंबर है ..शून्य से लेकर चार तक
अर्थात अधिकतम ५२ नंबर तक आ सकता है
निधारित मान्यता के अनुसार अगर किसी को १३ नंबर तक या उससे नीचे आता है तो उसे गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है । गाँव में चलनेवाली सारी योजनाये १३ अंक लाने वाले व्यक्तियों तक सीमित कर दिया गया है ॥
फलतः सरकारी योजनायो का फायदा उठाने के लिए सब लोग तिकड़म लगाकर १३ या उससे नीचे का अंक प्राप्त करने को उतावले रहते है ।
इस कार्य को अंजाम देने के लिए अर्थात प्रश्न पूछने के कार्य में गुरु जी को/ प्रखंड के कर्मचारियों को लगाया जाता है।इनकी भूमिका संदेहस्पद मानी जाती है
एक बार सूचि बन जाने के बाद उसी के अनुरूप ग्रामवासियों को योजना का लाभ मिलता है ।
परन्तु मुखिया या ग्रामसेवक गाँव के भोले भले लोगों को डर दिखाकर..इंदिरा आवास एवं अन्य योजनाओ का लाभ दिलाने हेतु अवैध वसूली करते है । वसूली करने में गाँव वासी ही दलाल की भूमिका अदा करते है
चुकि रुपया लाभान्वित के बैंक खाता में जमा होता है इसलिए पकड़ में कोई नहीं आता ।






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