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Saturday, January 15, 2011

आलिंगन


चंचल चितवन देख तुम्हारा
अब फूल भी भरती आहें
महक उड़े जब तेरे तन की
आलिंगन को तरसे बाहें //

डगर-डगर और खेत-खेत की
हरियाली गीत ख़ुशी की जाएं
कब आओगी,कब आओगी
प्रश्न पूछती मेरे घर की राहें //
आलिंगन को तरसे बाहें //

13 comments:

  1. bhabhi ji se batana padega mujhe aur to baki sab theek hai!!

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  2. bhoot achhi rachna hai ye dil ko dhush kar diya likhne wale ko mai bdhae dena chahunga jai mithila jai hind

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  3. Babanji, very nice, sweet little romantic poem.................keep it up!!!

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  4. जय हो, भगवान आपकी इच्छायें पूर्ण करे, सोच समझ कर।

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  5. बाहें तो तरसती लेकिन खेत ही क्योँ ? ......जरा ध्यान रखना ..दुनिया बड़ी जालिम है

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति....!!

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  7. बबन भाई,पहले इन मोहतरमा से परिचय कराइये.....आपके कदम भी भटक गए है क्या????? हा हा हा
    मजाक कर रहा हूँ.....सुन्दर रचना के साथ-साथ गजब की प्रस्तुती....आपको बहुत-बहुत बधाई..

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  8. सुंदर अभिव्यक्ति...बहुत-बहुत बधाई|

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  9. Babban ji..bahut sunder. bahut romentic.wah

    प्रश्न पूछती मेरे घर की राहें //lekin ye swaal.
    आलिंगन को तरसे बाहें //aur ye khayaal..wah.

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  10. बहुत खूब...आनंद आ गया।

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  11. This comment has been removed by the author.

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