
हम- तुम मिलते थे
दूसरों की नज़रों से बचते -बचाते
कभी झाड़ियों में
कभी खंडहरों के एकांत में
सबकी नज़रों में खटकते थे
फिर एक दिन ...
घर से भाग गए थे
बिना सोचे-समझे
अपनी दुनियाँ बसाने //
नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
देती थी तेरी हर अदा
कितना अच्छा लगता था
दो समतल दर्पण के बीच
तुम्हारा फोटो रख
अनंत प्रतिबिम्ब देखना
मानो ...
तुम ज़र्रे-ज़र्रे में समाहित हो //
कहने को
हम अब भी
एक-दूजे पे मरते है
एक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है //
प्यार ही प्यार | एक खुबसूरत एहसास को दर्शाती सुन्दर रचना |
ReplyDeleteगहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteदिल के खिलौने को
ReplyDeleteहम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है /
बहुत सुंदर।
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकहने को
ReplyDeleteहम अब भी
एक-दूजे पे मरते है
एक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है //bahut hisaarthak rachanaa.seedhe saral shabdon main likhi sunder rachanaa.badhaai sweekaren.
mera blog main aane ke liye dhanyawaad.
bahut achchha likhte hai aap......comment dene ke liye shukriya
ReplyDeleteनींबू सी ताजगी भरी रचना | अच्छा लगता है आपको पढ़ना |
ReplyDeleteक्योंकि हम प्यार करते हैं... क्या बात है।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeletevery refreshing...just like nibu
ReplyDeleteनींबू सी ताजगी भरी,
ReplyDeleteवाह,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बोले तो पुराना ..बहुत पुराना लिरिल का एड याद आ गया
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर रचना, सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .