
ख्वाहिस है मेरे मन में ,तेरे अंगना मैं आऊं
करके सोलह श्रींगार , तुमको मैं ललचाऊं
काले बादल से रंग मांग कर,काजल मैं पहनुगी
प्यार का तेरा पंख लगाकर ,आँगन में चहकुंगी //
उमड़-घुमड़ कर बदरा सी मैं,प्रेम रस बन बरसूँ
आलिंगन में बंधकर तेरे ,माँ बनने को तरसूँ
दो बच्चो की माँ बनकर, मैं उनके साथ चलूंगी
ममता और वात्सल्य का दीपक बन,तेरे संग जलूँगी //
बबन जी, बहुत खूबशूरत रचना है... आपको बहुत बहुत साधुबाद इस रचना के लिये..-
ReplyDeleteसादर
अनूप परिहार
जय हो, गंगा सा प्रवाहमयी है आपका साहित्यिक बहाव।
ReplyDeleteबबन भाई, श्रृंगार रस से भरपूर इस रचना के लिए आपको ढेर सारी बधाई. बहुत ही सुन्दर और प्रशंसनीय रचना. बहुत खूब.
ReplyDeletematretav aur parivar ke saath bandhane ka sunder ullekh hai
ReplyDeletebahut badiya babn ji bahut achchhi prastuti hai
ReplyDeletebahoot sunder
ReplyDeletei m very thankful to all of my friends...mere lap-top kharab hai ....maafi chahta hun //
ReplyDeleteउमड़-घुमड़ कर बदरा सी मैं,प्रेम रस बन बरसूँ.....वाकई बहुत सुन्दर....भाई जी.....
ReplyDeleteपाण्डेय जी,
ReplyDeleteसुना है आपका लैप टाप खराब है लेकिन मन तो खराब नही लगता है।जवन फोटो लगाए हैं, उसे देखकर तो मेरा मन भटक रहा है कि क्या लिखूं।हमके भुला मत,तोहरे कामे आईब।लगल रह .......।
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeleteDEAR SIR,
ReplyDeleteYOUR THINKING IS BEYOND APPRICIABLE...
LOVE BETWEEN HUSBAND AND .WIFE IS VERY ESSENTIAL FOR A GOOD LIFE