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Thursday, February 17, 2011

काम -हवा


फागुन की इस काम हवा में
मैं क्या बोला,तू क्या बोली
देख तुम्हारा रूप कामिनी
रोज करू एक नया ठिठोली //

रंग लगाउंगा अंग -अंग में
आ जाने दो होली
कोई बिगड़े ,कोई झगडे
या फिर चल जाए गोली //


उर के ऊपर -नीचे होने से
हांफ रही है तेरी चोली
रंग लगाने तेरे तन पर
खड़ी, देवरों की टोली //

11 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना .

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  2. badiya
    रंग लगाउंगा अंग -अंग में
    आ जाने दो होली
    कोई बिगड़े ,कोई झगडे
    या फिर चल जाए गोली //

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  3. प्रणय भावों से भरपूर कविता ..सुंदर

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  4. सरा रा रा रा रारारारा्रा रा रा होली के रंग मे रंगी बहुत ही अच्छी कविता

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  5. bahut sunder bhai.....holi ke rang ka ek alag hi maja hai..

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  6. ye kya bakchodi hai baban? mooth maarna aur kavita likhna ek baat nai hai.agar kisine tumse kaha hai ki tum kavita likh sakte ho to usne mazaak kiya hoga. mooth maarna porn tak hi rakho,, kavita me mat lao. achchi kavita nai likh sakte to mat likho... aisi kavita likhkar kavita ka apmaan mat karo.

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  7. होली की बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है उतने ही सुन्दर आपके विचार है जो सोचने पर मजबूर करदेते है
    कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये में निचे अपने लिंक दे रहा हु
    धन्यवाद्

    http://vangaydinesh.blogspot.com/
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://pareekofindia.blogspot.com/

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  8. kya likhu .kuch samajh nahi aa raha hai holi ke rang me sab dub gaya hai

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