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आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गय...
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तुमको पाकर , मैं चांदनी में नहा गया मगर कमबख्त सूरज खफा क्यों हो गया // आप आये थे ,रुमाल से मेरे अश्कों को पोछने मगर आप खुद ही अश्...
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कई रंग देखे ,कई रूप देखे और देखें मैंने कितने गुलाब कई हंसी देखे,देखी कितनी मुस्कुराहटें मगर नहीं देखा तुमसा शबाब // (अपने मित्र अजेशनी...
वाह बबन जी, कितने सरल शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने.................बहुत खूब...................काश बर्फ की तासीर थोड़ी ठंडी हो जाए !!!!
ReplyDeletebahut hi accha expression sach hai ki barf bahut zyada hi garm hai
ReplyDeleteगहरी कविता, संक्षेप में।
ReplyDeletesachchee kavita. Badhai.
ReplyDeletebarf garm aur aag thandhi hoti ja rahi hai.
ReplyDeleteसच है.
ReplyDeleteबर्फ तो पिघल जाती है.
वादी तो दशकों से जमी हुई है. .....................
.....................
बहुत सुन्दर बबन जी. दिल को छूने तथा दिमाग को सोचने पर मजबूर करनेवाली कविता है.
बहुत ही सुन्दर शब्द ...।
ReplyDeleteआदरणीय ब्लागमित्र
ReplyDeleteनमस्कार और नये साल की शुभकामनाऐं
बर्फ की तासीर गर्म है...सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteरोड़ेबाजी
ReplyDeleteगोलियों की तडतड़ाहट
क्या बर्फ गर्म है
सच है ॥
बर्फ की तासीर गर्म होती है
बहुत सुंदर रचना . बधाई .
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ,बधायी ।
ReplyDeleteनव वर्ष शुभ हो !
बहुत ही सुन्दर शब्द|आपको नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteआपको तथा आपके परिवार के सभी जनों को वर्ष २०११ मंगलमय,सुखद तथा उन्नत्तिकारक हो.
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