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Saturday, October 2, 2010
जब गेंडे को नशीली सुई दी गई
वैसे जानबरो के चरित्र और क्रिया कलापों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है , ना ही मैं इस क्षेत्र से जुड़ा हूँ
वैसे जानबरो के बारे में अधिकाधिक जानकारी लेने और पढने में मेरी पूरी दिलचस्पी है ।
जमशेदपुर ,जिस टाटानगर भी कहते है ,अपने स्टील कारखाने के कारण पुरे विश्व में जाना जाता है । पूरा जमशेदपुर
घने जंगलों एवं पहाड़ो से घिरा है । सिल्वर -जुबली पार्क और डिमना -लेक यहाँ के प्रमुख प्रयटक स्थल हैं । डिमना -लेक में जमा अथाह जल राशि को शोधित कर जमशेदपुर शहर में पीने का पानी उपलब्ध कराया जाता है . जमशेदपुर से कुछ ही दूर है ..." दलमा अभ्यारण्य " जहां हाथी बहुतायद में पाए जाते है । मेरे मित्र श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह सन २००२ में इसी अभ्यारण्य में रेंज -ओफ्सर के रूप में पदस्थापित थे । उनके अनुरोध को मैं नहीं टाल सका । उनकी sarkaari गाडी में सवार हो उनके साथ मैं दलमा -अभ्यारण्य देखने निकल पड़ा ।
प्रवेश के स्थान पर मैंने पतले तार .पिलर में बंधे हुए दूर दूर तक देखे । मैंने उनसे इन तारों के बारे में पूछा । उनके द्वारा बताया गया कि प्रायः सभी अभ्यारण्य की सीमाए खुली होती है और जानवर निर्भीक हो कर रात में /दिन में
आस -पास के गांवों में प्रवेश कर जाते है तथा किसानो की फसलों को बर्बाद कर देते है । हालाकि ऐसी स्थिति में किसानो को मुआबजा देने का प्राबधान है फिर भी सरकारी लम्बी प्रक्रिया में कौन उलझाना चाहता है । इन तारों में हलकी मात्रा में बिजली प्रवाहित की जाती है , जिससे जानवर उसके आगे नहीं जा पाते ।
ठीक इसी तरह "वाल्मीकिनगर बाघ अभ्यारण्य " और नेपाल की " चितवन -नेशनल पार्क " की सीमाए
खुली है तथा वहाँ किसी प्रकार के बिजली के तारों का इस्तेमाल नहीं किया गया हैं । फलतः नेपाल के जानवर और भारतीय जानवर इन्सानों की तरह ही बेरोक -टोक सीमा पार करते है ।
वर्ष २००४ में जब मैं वाल्मीकिनगर में था , भीषण बरसा के साथ , नदी की जल -प्रवाह के सहारे एक मोटा -ताजा गेंडा बह कर वाल्मीकिनगर से सटे नेपाल के त्रिवेणी बाज़ार में आ गया एवं गाँव वासियों को अपने सींगों से प्रहार कर उपद्रव करने लगा।
जब तीन -चार दिनों के बाद भी गेंडा वापस जंगल में नहीं लौटा ,तब लोगों ने इसकी शिकायत वन्य -प्राणी अभ्यारण्य के पदाधीकरियो से की । तत्पश्चात एक बड़े पिंजड़ा नुमा ट्रक पर सवार हो वन विभाग नेपाल के पदाधिकारी आये । उन्होनें दूरबीन लगे रायफल की मदद से एक नशीली सुई गेंडे को निशाना साधकर लगाया । सुई लगने के उपरांत गेंडा शांत चित हो गया , जिसे तुरंत ही कर्मियों ने जालीदार पिंजड़ा नुमा ट्रक में डाल दिया
फिर उसे घने जंगलों में छोड़ दिया गया ।
एक चीज जो मैंने अनुभव किया कि चिड़ियाखाना में बन्द और खुले अभ्यारण्य में विचरने वाले जन्तुओ
कि ताकत में ज़मीं -आसमान का अंतर होता है ।
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आप द्वारा दी गई दलमा अभ्यारण्य की जानकारी ज्ञानवर्धक है.चिरिया घर और अभ्यारास्न्य के
ReplyDeleteजानवरों की छमता का अंतर भी स्पष्ट हुआ.क्या आपको ऐसा नहीं लगता की मनुष्यों की छमता
भी विभिन्न प्रकार की सामाजिक और सरकारी वर्जनाओं के कारन चिरियाघर के जानवरों की
तरह कमजोर हो गई है ?
vinod ji @ i m totally agree with you ...we or our children ..have face many social and governmental ..disorder.. thanks for visiting
ReplyDeleteBabanji, the information u have shared is very interesting. One thought came to my mind after reading this is that if we are not bound by so many social restrictions or reservations ,may be we would have been number one today in all fields.Right to Freedom , we all want.
ReplyDeleteTHANKS ...VIJAY LAKSHMI JI ...KEEP READING
ReplyDeletePandeyji, a Rhino in a Zoo can be viscious. I remember one incident in VJB Hill Garden Zoo in Mumbai. One father had gone to zoo along with his son to the Zoo. The child's Chappal fell in Rhino enclosure. Father jumped into the enclosure hoping that he will be able to retrive the chappal. The rhino which was looking docile and lazy charged at the Visitor. The poor father died. So in all the wild animals it is a part of security drill to tranquilise the animal for the safety of all concerned.
ReplyDeletethanks Jambo ji ....for very informative...story sharing with me
ReplyDeleteBabanji,
ReplyDeleteYour final observation is absolutely correct... If a living being will be forced to live in an unnatural environment, he/she will force him/her to behave unnatural... I highly appreciate and regard your sharp vision and wisdom in this regard... Thanks and Regards...
A GOOD STORY....INERESTING... AND INFORMATIVE.../
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