प्रशाशनिक पदाधिकारी ने पैसे कमाने के लिए क्लर्क बाबु को अपना दलाल बनाया हुआ था । बेईमानी में भी ईमानदारी का अपना महत्त्व होता है । क्लर्क बाबु सभी से ११०० रूपये की रकम लेता और काम करा देता।
एक दिन साहब की नज़र एक फ़ाइल पर पड़ी । साहब ने अपनी कलम वापस अपने पाकेट में कर ली । कहते है ...लड़की वालों से दहेज़ और जनता से घुस के पैसे उनकी औकात देखकर मांगी जाती है । साहब ने क्लर्क से कहा ,"इस काम के लिए पुरे पांच हज़ार लगेगें " । क्लर्क ने सहृदयता से कहा ," जैसी ईच्छा "
प्रशाशनिक पदाधिकारी ने अपनी कुशाग्र बुद्धि का भरपूर उपयोग किया । क्लर्क से कहा ," कल पार्टी को बुलाना और मेरे चैम्बर की खिड़की पास उसे खड़ा कर देना तथा उसकी फाइल मेरे टेबल पर रखना " ।" जी ,सर " कहते हुए क्लर्क ने स्वीकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया ।
दुसरे दिन क्लर्क ने पार्टी को खिड़की के पास खड़ा कर दिया तथा फ़ाइल को साहब के टेबल पर रखा । पार्टी खिड़की से साड़ी गतिविधि देख रहा था ।
फ़ाइल देखते ही साहब आग -बबूला हो गए । उन्होनें जोरदार आवाज में क्लर्क से कहा, "सस्पेंड होना है क्या ?
मुझे भी कराएगा और खुद भी होगा"। यह कहकर उन्होनें फ़ाइल टेबल पर से फेंक दी ।
क्लर्क भी भौचक रह गया । अचानक साहब का यह तेवर ! शाम को उन्होनें अपने आवास पर क्लर्क को बुलाया और कहा ," पुनः उस पार्टी से मिलो और डिमांड करो "
और सच में ,साहब की यह तरकीब काम आई । पार्टी भी भयभीत था । तुरंत ही पांच हज़ार देकर फ़ाइल पर हस्ताक्षर करवा लिया ।
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ZABADAST BABAN BHAI, BILKUL HAQIQAT,EK KADWA SACH, JITNA BHI LIKHA JAYE KAM HAI,
ReplyDeleteये तो बहुत आम बात हो गई है भाई साहब! हर कोई अपने से निचे वाले का सहारा लेकर ये घिनौना काम करता है! दुर की क्या कहुँ मै खुद एक सरकारी दफ्तर के बडे बाबु के लिए छोटे बाबु के हाथ में प्रत्येक महिने दो हजार रुपये देकर आता हुँ !
ReplyDelete..नाटकीय घूसखोरी का सटीक उदाहरण पेश किया बबन सर आपने..
ReplyDeleteBabanji, yeh sab nautanki to aajkal aam baat ho gayee hai. Saare din aise hi kisse sunne ko milte hain. Sab "kursi" ki maaya hai....Jiska palda bhari......baazi usi ki.
ReplyDeleteBaban ji, yah hota hai aapne jitna likha hai us se kahi adhik hota hai....is me koe aascharya ki bat bilkul bhi nahi hai.....suprem cort ne kaha hai isko ligel kar dena chahiye...
ReplyDeleteहमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश में ऐसा होता है बबन जी। और लगभग सभी सरकारी महकमों का यही हाल है..
ReplyDeleteमेरा देश महान... सरकारी महकमो कमोबस यही हाल है साहब .. जय हो
ReplyDeleteहर कार्यालय की यही अकथ कहानी है |
ReplyDeleteShree Baban Bhai Ji,Aap ne bilkul sahi likha hai..har ek sarakari office me aisa hi hota hai... aap ne bahut hi sundar aur saral shabdo me likha hai...kahi se bhi ise nakara nahi ja sakata...Dhanybaad aap ko, is tarah ke samajik muddo par likhana ke liye...Ma Saraswati ki kripa sadaiv aap par bani rahe..
ReplyDeleteबबन जी...........यही हैं हकीकत आज हर विभाग की.....जहा जिसको मौका मिलता हैं छोड़ता नहीं वो उसे..........जिसको मौका नहीं मिलता ........वो ईमानदार कहलाता हैं....पर यहाँ आपने पैसे थोड़े कम रखे रिश्वत के..............काफी बढ़ चुकी हैं अब तो..........
ReplyDeletevyavyastha ki vidambanayen darshati sateek post!
ReplyDeleteregards,
bahut sahi kaha,Nitishje jab satta me aaye the to unhone corruption ko khatam karne ki jordaar tarike se baat ki thi par aaj haalat kya hain saari duniya dekh rahi hai........
ReplyDeleteIt may happen, but there are lot of officer's who never prefer or even think about it.
ReplyDeleteBabbanji ye adhikaarigan aur karmchaari hum mein se hi aate hain. Mera beta agar police mein SI hai aur wo haram ki kamaai laata hai to muze aur parivarjanon ko achchha lagta hai. Hamein ye aadat hai ke hamare jo sage-sambandhi ye karte hain unse hum mukh nahin modte. Inka samajik bahishkaar hona jaruri hai. Padoshi bhi unse koi vyavhaar na kare. Hamare parv-utsavo mein samaaj unhein saamil naa kare tab hi kuchh baat ban sakti hai, magar hum dekhte hain aise avsaron par ye manch ki shobha bhadhaate dikhayi dete hain. Astu.
ReplyDeletehonourable ..Ajitsingh ji ...you have written very correctly...whenever..we ...give support to our relatives to do so ...it cannot be reduced or eradicated...
ReplyDeleteबबनजी,
ReplyDeleteरुपया माई रुपया बाप, बगैर रुपये बडा संताप...
sabhi bure nahi hote hai ,par kuch vasatav mai bure hote hai .
ReplyDeletehar adami shuru mai imandar hota hai kuchh achchha karna chahata hai par ye sistem use bura banane ke liye majboor kar deta hai .
pahale buraee nieeche se ate hai
babu ka matlab hota hai
ba yani adami jo seet par baitha hai
bu yani badabuu se bhara hua adami ...............
विकास के इस दौर में इस क्षेत्र ने कुछ ज्यादा ही उन्नति पा ली है। हम जैसे लोगों की विवशता यह है कि सबकुछ जानते हुए भी उसमें जौ के साथ घुन की तरह पिसे जा रहे हैं। आपने आवाज उठायी, मनोबल मिला। हम भी कोशिश करेंगे अपनी बात बताने की, पर फिर कभी..।
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