बिहार के जन- जन में लोक आस्था का चार दिवसीय पर्व छठ का बहुत ही महत्त्व है । सबसे बड़ी बात जो पर्व से जुडी है ...वह है शुद्धता और पवित्रता । शायद दुनिया में यही एक पर्व है जिसमे शास्वत सत्य सूर्य को जो कि पूरी दुनिया का संचालक है ,को उगते और अस्त होते समय अर्ध्य दिया जाता है ।
चार दिवसीय पर्व की शुरुयात पहले दिन "नहाय -खाय ' से की जाती है ...इस दिन ब्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष गंगा -स्नान कर नए चूल्हे पर बनाया हुआ खाना खाते है । यह चूल्हा मिटटी से बनाया जाता है । इस दिन कद्दू खाने का बड़ा ही महत्त्व है ।
दुसरे दिन 'खरना ' होता है ..पुरे दिन ब्रत करने वाले ( स्त्री -पुरुष ) भूखे रहते है । शाम को नए चूल्हे पर प्रसाद बनाया जाता है । जो की जगह के अनुसार बदलता है । कही गुड का खीर बनता है ...तो कही अरवा चावल और चना का दाल ...ख़ास बात इसमें साधारण नमक नहीं डाला जाता ...इसमें सेंधा नमक का व्यवहार किया जाता है ।
सभी लोग एक दुसरे के यहाँ जाकर प्रसाद को ग्रहण करते है ।
तीसरे दिन पुनः ब्रत करने दिन भर भूखे रहते है .....तथा शाम को अस्त होते सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्ध्य देते है । साथ ही सूप में नाना प्रकार के फलों को रखकर पूजा की जाती है ।
सूर्य के साथ साथ समझिये नदी की भी पूजा होती है ।
पुनः रात भर ब्रत करने वाले खाना नहीं खाते । सब रात -भर जागकर सूर्य -देव के उदय होने का इंतजार करते है । तथा सुबह में उदय्गामी सूर्य को अर्ध्य देकर यह पर्व समाप्त होता है ।
पहले जब मोटर गाडी नहीं होते थे तब लोग शाम को नदी तट पर अर्ध्य देकर रात्री में वही रहते थे ।
इस पर्व के अनेक लोग गीत है । सारे मीट मछली अंडे की दूकान बांध रहती है । युवकों द्वारा पुरे सड़क की सफाई और नदी की सफाई की जाती है । छठ के गीत बहुत ही कर्णप्रिय होते है । बिहार की लोकगायिका शारदा सिन्हा को छठ की गीत गाने और लोक गीत के कारण पद्म श्री मिला है
चार दिवसीय पर्व की शुरुयात पहले दिन "नहाय -खाय ' से की जाती है ...इस दिन ब्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष गंगा -स्नान कर नए चूल्हे पर बनाया हुआ खाना खाते है । यह चूल्हा मिटटी से बनाया जाता है । इस दिन कद्दू खाने का बड़ा ही महत्त्व है ।
दुसरे दिन 'खरना ' होता है ..पुरे दिन ब्रत करने वाले ( स्त्री -पुरुष ) भूखे रहते है । शाम को नए चूल्हे पर प्रसाद बनाया जाता है । जो की जगह के अनुसार बदलता है । कही गुड का खीर बनता है ...तो कही अरवा चावल और चना का दाल ...ख़ास बात इसमें साधारण नमक नहीं डाला जाता ...इसमें सेंधा नमक का व्यवहार किया जाता है ।
सभी लोग एक दुसरे के यहाँ जाकर प्रसाद को ग्रहण करते है ।
तीसरे दिन पुनः ब्रत करने दिन भर भूखे रहते है .....तथा शाम को अस्त होते सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्ध्य देते है । साथ ही सूप में नाना प्रकार के फलों को रखकर पूजा की जाती है ।
सूर्य के साथ साथ समझिये नदी की भी पूजा होती है ।
पुनः रात भर ब्रत करने वाले खाना नहीं खाते । सब रात -भर जागकर सूर्य -देव के उदय होने का इंतजार करते है । तथा सुबह में उदय्गामी सूर्य को अर्ध्य देकर यह पर्व समाप्त होता है ।
पहले जब मोटर गाडी नहीं होते थे तब लोग शाम को नदी तट पर अर्ध्य देकर रात्री में वही रहते थे ।
इस पर्व के अनेक लोग गीत है । सारे मीट मछली अंडे की दूकान बांध रहती है । युवकों द्वारा पुरे सड़क की सफाई और नदी की सफाई की जाती है । छठ के गीत बहुत ही कर्णप्रिय होते है । बिहार की लोकगायिका शारदा सिन्हा को छठ की गीत गाने और लोक गीत के कारण पद्म श्री मिला है
hummmmmmmm....
ReplyDeletemai bhi rahati hun chhath pooja ...meri taiyariyn bhi suru ho gayi hai ..
bahut accha kiye aap fb par is post karake Bhaiya , hamari aastha ka parv hame bahut sukun deta hai ....!!
छठ्ठ की परंपरा को जानने की खुशी... बधाई |
ReplyDeletehttp://vishva-gatha.blogspot.com/2010/11/blog-post_2847.html
आपके लेख को हमने आपके नाम और ब्लॉग के नाम के साथ साभार अपनी ओनलाइन न्यूज मैग्जीन में लगाया है
ReplyDeleteलिंक देखें
http://www.journalisttoday.com/dharam-karam
shubhkamnayen!
ReplyDeletebahut sunder ...:)
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