मुझे पटना स्थित "जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान " में सिंचाई जल के समुचित उपयोग विषय पर प्रशिक्षण हेतु चुना गया था । पांच दिवसीय प्रशिक्षण में कृषि क्षेत्र में सिंचाई जल के समुचित उपयोग पर विस्तार से चर्चा की गयी ।
प्रायः लोगो में / किसानों में ऐसी धारणा है कि फसलों में जितना पानी दो ,उतना ही अच्चा । परन्तु बात ऐसी नहीं है । प्रत्येक फसलों के लिए पानी की मात्र निर्धारित है । ज्यादा या कम पानी देने से फसल की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ता है ।
नाईट्रोजन ,फोस्फोरस और पोटाश , तीन ऐसे तत्व है जिन्हें हर पौधे कोजरुरत होती है । मगर पौधे वायुमंडल में उपलब्ध को नाईट्रोजन उसी रूप में ग्रहण नहीं कर पाते । पौधे नाईट्रोजन को नाईट्रेटके रूप में ग्रहण करते है और इस कार्य में " राईजोबियम " नामक बैकटेरीया हमारी मदद करता है । ये बैकटेरीया फलीदार पौधों जैसे चना ,मटर ,मूंग ईत्यादी के जड़ों की गाठों में पाया जाता है
हमारे किसान पढ़े -लिखे नहीं होते ,जिसके कारण वे फसल चक्र के महत्त्व को नहीं समझ पाते वे हर वर्ष धान और गेंहू की फसल लगाते है और नाईट्रोजन के लिए भारी मात्रा में यूरिया का प्रयोग करते है । अगर धान के बाद चना ,मूंग ,मटर की एक फसल ले ली जाये तो वह भूमि नाईट्रोजन से संपोषित हो जायेगा और किसानों को कम लागत में अच्छी उत्पादकता मिलेगी ।
एक तीसरी बात जो मुझे सबसे अच्छी लगी ,वो यह है की लोग यूकिलिप्टस के पेड़ जहाँ -तहां लगा देते है
यूकिलिप्टस बहुत तेजी से भूमि जल खीच कर वातावरण में भेजता है .इस पौधे को वैसी जगह लगाना चाहिए ,जहां जल -जमाव हो या भूमिगत जल -रेखा ( वाटर -टेबले ) बहुत ऊपर हो ।
ऐसे प्रशिक्षण की आवश्यकता गाँव -गाँव में है । गाँव में अब बड़े -चौड़े विद्यालय है , जिनमे प्रशिक्षण कार्य देना बहुत ही आसान है । गाँव में प्रशिक्षण आयोजित कर जहाँ हमलोग एक तरफ कृषि के विकास की बात करेगे ,वही दूसरी ओर किसानों की समस्याओ से भी रु-ब -रु हो सकेगे । साथ ही बंजर हो गई भूमि की मिटटी जाँच एवं उसे खेती योग्य उर्वर जमीनमें बदलने की प्रक्रिया किसानो के समक्ष कर इस भावना को जागृत करेगे कि अगर कृषि ,वैज्ञानिक ढंग से की जाये तो कभी भी हानी नहीं होगी । इसतरह कृषि से विमुख होने वाले किसान भाइयो /मजदूरों को हमलोग शहरों की भीड़ में जाने से रोक सकेगे ।
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