वाल्मीकि नगर से ही नेपाल के प्राकृतिक सौन्दर्य का दर्शन होना प्रारंभ हो जाता है , मैं अपने को रोक न सका । वाल्मीकिनगर से बराज से पुल पार करने के बाद पहाड़ो की तलहट्टी में बसा है नेपाल का त्रिवेणी धाम । यहाँ से नेपाल के काठमांडू ,पोखरा ,बुटवल इत्यादि शहरों के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है ।
नेपाल और भारत के अंतरास्ट्रीय समय में १५ मिनट का अंतर है .मतलब अगर भारत में ९.४५ बजे है तो नेपाल में १० बजेगा । नेपाली समयानुसार सुबह पांच बजे से बसे चलना प्रारंभ हो जाती है।
मैंने सुबह वाली बस पकड़ी। जुलाई २००८ की बात है लगभग २५ किलोमीटर चलने के बाद 'बरटांड" नामक स्थान पर बस कुछ देर के लिए रुकी । वास्तव में बस अब "महेंद्र राजमार्ग " पर चलने के लिए तैयार थी । जानकारी के लिए बता दू ...नेपाल में महेंद्र राजमार्ग और त्रिभुवन राजमार्ग दो बहुत ही महत्वपूर्ण सडकें है ।
बस अब महेंद्र राजमार्ग पर दौड़ रही थी । मैं पहलीबार नेपाल की वन संपदा देखकर दंग रह गया । सखुआ के मोटे -मोटे वृक्ष मैंने पहलीबार देखा था ..जो करीब ५० -६० फिट की ऊँचाई तक एकदम सीधा था । दोनों तरफ पहाड़ो का अनुपम सौन्दर्य और हरीतिमा मन को मोहने के लिया काफी था । मैंने सड़क के किनारे लगे सुचना पट्ट को पढ़ा .... मेरी बस "दाउने नेशनल पार्क" से होकर गुजर रही थी । एक जगह बस रुकी .....शायद सड़क पर कुछ मलवा पड़ा था । बरसात के दिनों में भू -अस्ख्लन आम बात है । यहाँ पर पहाड़ लगभग सीधी थी ...करीब ३०० फीट( १०० मीटर ) ऊँचा ।
झरने जिनका नाम सुनते ही हमें देखने की इच्छा होती है । एक बार मैं सिर्फ झरने देखने के लिए मध्य -प्रदेश के पचमढ़ी नामक स्थान गया था । मगर मैंने असंख्य झरने सडकों के किनारे देखे ....जिसका पानी सड़क पर ही बह रहा था । पानी इनता साफ़ मानो बोतल बंड पानी की तरह । सड़क के किनारे होटलों में इसी पानी का प्रयोग हो रहा था ....गाँव के लोग इस पानी को जमा कर उपयोग में लाते है ।
वाल्मीकिनगर में हम जिसे गंडक नदी कह रहे थे वह नेपाल में नारायणी नदी के नाम से जाना जाता है ।
लगभग नौ बजे मैं नारायण घाट पहुंचा.नारायणी नदी के किनारे यह बसा शहर बहुत ही खुबशुरत है । यहाँ तो प्रयटको का मानो मेला लगा था .दुसरे मार्गों की बसों को भी काठमांडू जाने के लिए यहाँ आना पड़ता है,पूर्वी नेपाल से आने वाली बसें । यही से पहाड़ो की चढ़ाई मुख्य रूप से प्रारंभ होती है । बस के चालक द्वारा अनुरोध किया गया कि सब कोई भोजन कर ले । बहुत लोग बस से उतर कर छोटी गाडी टाटा की रिन्गर पकड़ ली । मुझे सौन्दर्य को देखना था । मैंने बस पर बैठना उचित समझा । नेपाल के छोटे -से छोटे होटल में भी आपको बियर और शराब उपलब्ध होती है । पीने वालो की तो पूछिये मत । शायद अधिकांश लोग मस्ती करने ही नेपाल जाते है ।
बस खुल चुकी थी । एक तरफ २००० फिट नीचे नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ १००० फिट ऊँचे पहाड़ ।
नदी के दूसरी तरफ कुछ गाँव नज़र आ रहे थे । लोगो को सड़क तक आने के लिए ऋषिकेश में बने लक्ष्मण झूले जैसे पुल बने थे । खेतों में धान और मकई के पौधे साफ़ नजर आ रहे थे । झरने देखते -देखते मानो मन थक गया ।
नदियों का ढाल बहुत ही ज्यादा है । इनमे छोटे -छोटे बाँध बनाकर खूब पनबिजली बनाई जा सकती है । सड़क के किनारे तो मुझे कही नहीं मिला । हां ...पत्थरो को तोड़ने वाले क्रशर मिले .... पत्थरो की गिट्टी और बालू से ईट बनाने के बहुत से कारखाने मिले । रास्तों में कंक्रीट के ईट का उपयोग कर बनाए गए मकान भी दिखे ।
तिम्लिंग के बाद सड़क दो भागों में बट गई ...एक भाग काठमांडू की ओर दूसरी पोखरा की तरफ । कुछ दूर तक मैदानी भाग आया ..बस सरपट दौड़ रही थी । अब मैं पोखरा पहुँचने ही वाला था । पोखरा बस स्टैंड पर बस रुकी
मुझे पूर्व से ज्ञात था ....पोखरा का महतवपूर्ण स्थल झील के किनारे वाली मुख्य सड़क पर बने होटलों का किराया बहुत अधिक होता है । अतः मैंने झील से लगभग ५०० मीटर दूर अपना होटल लिया । ( क्रमशः )
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