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Monday, January 17, 2011

एक औरत का प्रश्न


सच सच और केवल सच
बोलना मेरे सनम
क्या तुमने मेरे सिवा
किसी और को नहीं चाहा
किसी और देहयष्टि को नहीं छुआ
किसी युवा कामिनी के
अधरों की लाली देखकर
तुम्हारी कामुकता नहीं जगी
तुम्हारा हृदय तरंगित नहीं हुआ
तुमने नयन-मटक्का नहीं किया //


बहुत दिनों से
यह प्रश्न रेंग रहा था
मेरे हृदय में
जब से मैंने
कहते सूना था तुम्हें
अपने एक दोस्त से
घर की मुर्गी दाल बराबर
सुनो ....
अगर देखना चाहते हो मुझे सावित्री
तो तुम्हें भी सत्यभान बनना होगा //

17 comments:

  1. बहुत सार्थक और तार्किक !

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  2. aap purush ho ke kaphi sanvedansheelta se naari ko vyakt kar paate ho---sab ko sita chahiye---sita to sirf Ram ki hi hai---Ram to maryada puroshottam hai---

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  3. अति सुन्दर अभिव्यक्ति I हर व्यक्ति को सत्यवान व् नारी को सावित्री का आचरण वर्ण करना ही चाहिए I यही सुखी जीवन का आधार है I

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  4. bahut hi badiya ,agar sita chaahiye pahle raam bankar dikhana hi hoga

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  5. वाह बबन जी आज का काफी तार्किक प्रशन छोड़ा है !!!!!!!बहुत ही हिलाने वाला इन्सान को खुद को सोचने पर विवश करता ..चाहे इधर या उधर से !!!!!!!!!!!!!!Nirmal Paneri

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  6. बबन जी, न तो कोई सावित्री मिलेगी आपको, न ही कोई सत्यभान....................आपके पैमाने पर खरे उतरने वाले..............दिल बेचारा नादान है....................बहक जाता है.......................लेकिन तारीफ़ उसकी जो दिल और दिमाग के बीच संतुलन बना कर सही कदम उठाये!!!!

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  7. अगर देखना चाहते हो मुझे सावित्री
    तो तुम्हें भी सत्यभान बनना होगा


    सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

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  8. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  9. अगर देखना चाहते हो मुझे सावित्री
    तुम्हें भी सत्यभान बनना होगा /
    बहुत सही.....ताली एक हाथ से नही बजती.....हा हा हा

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  10. वाह सर जी... ये हुई न बात... बहुत सही...

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  11. This comment has been removed by the author.

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  12. "ना सिया ना राम जगत में
    है फिर क्यूँ अभिमान जगत में
    सुर तो साधे सबकी कथनी
    करनी का सम्मान जगत में"
    आपकी ये पोस्ट अच्छी लगी बबन जी

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  13. बहुत अच्छी रचना भ्राता श्री !

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  14. बबन जी! सार्थक और सटीक जबाब, अपने दिल से अपने को जानो....नारी तुम केवल श्रधा हो रजत.....पर आज के चकाचौंध भरे ज़िन्दगी में नारियों की ज़िन्दगी भी तंगहाल है पर पुरुषों पर शक करना उनकी फितरत है......लेकिन सच्चे प्रेम में तो 'शक' की गुंजाईश ही नहीं तो ऐसे प्रश्न ही निरर्थक लगते हैं ऐसा मेरा अनुभव है.
    सादर

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  15. अति सुन्दर अभिव्यक्ति....!!

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  16. बहुत सादगीपूर्ण और प्रभावी रचना !बधाई !!

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