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Wednesday, February 29, 2012

सागर अब झील में बदला


एक अन्जाने अपरिचित पथ पर चलकर मैंने तुझको पाया
स्नेह,प्यार और कोमलता का , मिला है अनुपम छाया //

मन में तम का जो घेरा था ,वह उज्जवल प्रकाश में फैला
उथल-पुथल सागर सा मन ,अब विशाल शांत झील में बदला //

मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
अब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ //

17 comments:

  1. Replies
    1. मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
      अब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ //
      WAAH KYA BAAT HAI... HAR SUBJECT KO AAP BAKHUBI UTAAR DETE HAI

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  2. मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
    अब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ //
    KYA BAAT HAI SIR.. JAI HO

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  3. खुबसूरत, मनमोहक व प्यारी हैं 'आपकी बातें'.. होली की शुभ कामनाएं.

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  4. मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
    अब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ


    bahut hi alag dhang se baat kahi hai sirji.. bahut badhiya likha hai :)

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  5. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात..

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  6. ati sunder shubh kamnayen

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  7. मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
    अब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ ...
    सार्थक रचना !

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  8. .......'मन में तम का जो घेरा था ,वह उज्जवल प्रकाश में फैला'.....अँधेरे से उजाले में परिवर्तन की एक सार्थक पहल..... आपको बधाई !

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  9. aachche bhaav ......lkhte rahiye aur hum sab ko yun hi padhwaate rahiye :)

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  10. सुन्दर सीख देती हुई रचना ..

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  11. बढ़िया रचना .प्रेम हाइकु भी बढ़िया कोमल भाव संजोये .

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  12. एक अन्जाने अपरिचित पथ पर चलकर मैंने तुझको पाया
    स्नेह,प्यार और कोमलता का , मिला है अनुपम छाया //
    अनजाने कर लें .
    अच्छा हाइकु .

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  13. इसे छोड़ कर बाकी की कविताएं तो लगता है आपने चित्र देख कर लिखी हैं इंजिनियर साहब:)

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