
तेरे गोरे बदन की खुशबू
जूही-चमेली सी महके
मेरे प्यार का गीत हमेशा
तेरी लवों पर चहके //
कोमल नयनों में नित
प्रेम की भाषा दहके
ख्याबों के घर में , तुम
नित दिन आना चुपके-चुपके //
महका दो मेरा घर -आँगन
इस ऋतुराज में दिलवर
भींग जाए मेरी यह अंखियाँ
जीवन भर हँसते-हँसते //
Kavita ki aakhiri char line hi kavit ki jaan lagi.Rituraj ke aane ka swagat ka andaz achha laga.
ReplyDeleteशुक्रिया गोपाल भाई ... स्नेह बनाए रखे ... प्रोत्साहित करते रहे
Deleteबहुत ही भावपूर्ण...
ReplyDeleteवसंत की मनोभावना को पूर्णरूप से प्रदर्शित करती हुयी रचना!
शुक्रिया chandan भाई ... स्नेह बनाए रखे ... प्रोत्साहित करते रहे
Deleteवाह!!!!!बबन जी बहुत खूब प्रेम के भावो की बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,, सुंदर रचना
ReplyDeleteMY NEW POST ...सम्बोधन...
बड़ी सुन्दर कामना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...अंतिम चार पंग्तियों ने दिल हिला दिया
ReplyDeleteसुंदर प्रेम गीत. बढ़िया भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeletevery nice and attractive
ReplyDeleteसुंदर अहसास!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
komal ahsason kisundar abhivyakti-------
ReplyDeletepoonam
बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति......
ReplyDeleteसुन्दर श्रृंगार.
ReplyDeletesunder abhivyakti hai
ReplyDeletesundar rachna .man ko moh liya aap ki lekhni ne .
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