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Friday, February 24, 2012

फागुनी बयार



तड़पता हूँ ,मचलता हूँ और आहें भरता हूँ
कण-कण में अब रब नहीं ,तुम्हें देखता हूँ //

पहले अकेले में मिलने से कतराता था मैं
अब यादों को याद कर अपने को कोसता हूँ //

पा लू तेरे गोरे बदन की खुशबू , किसी तरह
इस उम्मीद में अब , फागुनी बयार को चूमता हूँ //

8 comments:

  1. बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर फागुनी रचना के लिए बधाई,.....

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  2. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  3. हो जाएँगी जिन्दा सभी वीरान महफ़िलें.ये हमनशीं लबों की प्यास सभी जिन्दगी की हद में हैं ....उसको बना लो अपना जो उस पार भी चले ...बहुत - बहुत बधाई आदरणीय भाई जी ..//

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  4. सीने में उठती है जो लहर ,मुहब्बत नाम है ....दिलबरों का ऐसे ही नहीं चाहत - ऐ- इनाम है ..!!! बहुत -बहुत .बधाई आदरणीय भाई जी ..//

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  5. जय हो, नये मानक स्थापित कर रहे हैं..

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति,

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  7. फागुनी बयार को चूमता हूँ //
    WAAH SIR... BAHUT SUNDAR...

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  8. पा लू तेरे गोरे बदन की खुशबू , किसी तरह
    इस उम्मीद में अब , फागुनी बयार को चूमता हूँ //
    बहुत खूब तसव्वुर है .

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