
जबसे मैंने ....
तुम्हारे खिलखिलाते सुर्ख कपोलों पर
अपने अधरों का स्पर्श किया है ...
तबसे न जाने क्यों
ये भवरे मेरे अधरों के पीछे पड़े हैं
कई बार तुमसे पूछा इसका राज
ज़वाब में तुम मुस्कुरा देती हो
एक बात बताओ प्रिय!
क्या तुम्हारे कपोल
फूलों के परागकणों से तो नहीं बने //
aapka zawwab nahi hai sir jee/
ReplyDeletewah
ReplyDeleterahiman heera kab kahe lakh taka mero mol
sahi kaha aapne Avinash jee/
Delete.
ReplyDeleteबबन भैया,
अतिशयोक्ति अलंकार का ये अभिनव प्रयोग स्वप्न परी के अधरों को एक अपूर्व सौंदर्य प्रदान कर रहा है।
राम तेरी लीला!
.
वाह!!!!!बहुत अच्छी प्रस्तुति,आपका जबाब नहीं.......बेहतरीन
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
wahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh
ReplyDeletekyaa rang hai,,,,,,,,,,,,janaab,,,,,,,,,,,,,,,
अहा, परागकण..
ReplyDeleteBadaa sundar likhaa hai aapne.......क्या तुम्हारे कपोल
ReplyDeleteफूलों के परागकणों से तो नहीं बने...Lajwaab panktiyaan hai....badhaai.....
खूब बब्बन भाई ! क्या अद्भुत कल्पना है......सुंदर भावाभिव्यक्ति ......सुंदर शब्द चयन...अच्छा लगा...
ReplyDeleteभईया .. कमाल - कमाल और सिर्फ कमाल है आपकी जादुई लेखनी का .........मरहबा //बधाई स्वीकारें //
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
Delete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
अगर भौंरें आपके अधरों के पीछे हैं तो सवाल लाज़मी है । सुंदर कोमल अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteकपोलों की मिठास का बेहतरीन अतिश्योक्ति पूर्ण प्रतीक......बधाई....
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
सुन्दर शब्दों में कोमल भावनाओं का जादुई स्पर्श. बधाई इस प्रेम गीत की सुन्दर तरीके से की गयी प्रस्तुति के लिए.
ReplyDeleteati sundar komal prastuti.....
ReplyDeleteKmal hai
ReplyDelete