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Wednesday, February 29, 2012
सागर अब झील में बदला
एक अन्जाने अपरिचित पथ पर चलकर मैंने तुझको पाया
स्नेह,प्यार और कोमलता का , मिला है अनुपम छाया //
मन में तम का जो घेरा था ,वह उज्जवल प्रकाश में फैला
उथल-पुथल सागर सा मन ,अब विशाल शांत झील में बदला //
मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
अब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ //
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nice
ReplyDeleteबड़े ही सुन्दर भाव..
ReplyDeleteमारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
Deleteअब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ //
WAAH KYA BAAT HAI... HAR SUBJECT KO AAP BAKHUBI UTAAR DETE HAI
मारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
ReplyDeleteअब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ //
KYA BAAT HAI SIR.. JAI HO
bahut sundar Baban ji .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव की रचना के लिए बधाई,...
ReplyDeleteNEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
खुबसूरत, मनमोहक व प्यारी हैं 'आपकी बातें'.. होली की शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteमारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
ReplyDeleteअब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ
bahut hi alag dhang se baat kahi hai sirji.. bahut badhiya likha hai :)
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात..
ReplyDeleteati sunder shubh kamnayen
ReplyDeleteमारे कोई जब अब कंकड़ , उठती है मन में प्यार की उर्मियाँ
ReplyDeleteअब गीत लिखेंगी परोपकार के , मेरी यह पाँचों अंगुलियाँ ...
सार्थक रचना !
.......'मन में तम का जो घेरा था ,वह उज्जवल प्रकाश में फैला'.....अँधेरे से उजाले में परिवर्तन की एक सार्थक पहल..... आपको बधाई !
ReplyDeleteaachche bhaav ......lkhte rahiye aur hum sab ko yun hi padhwaate rahiye :)
ReplyDeleteसुन्दर सीख देती हुई रचना ..
ReplyDeleteबढ़िया रचना .प्रेम हाइकु भी बढ़िया कोमल भाव संजोये .
ReplyDeleteएक अन्जाने अपरिचित पथ पर चलकर मैंने तुझको पाया
ReplyDeleteस्नेह,प्यार और कोमलता का , मिला है अनुपम छाया //
अनजाने कर लें .
अच्छा हाइकु .
इसे छोड़ कर बाकी की कविताएं तो लगता है आपने चित्र देख कर लिखी हैं इंजिनियर साहब:)
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