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Saturday, February 18, 2012

महका दो मेरा घर-आँगन






तेरे गोरे बदन की खुशबू
जूही-चमेली सी महके
मेरे प्यार का गीत हमेशा
तेरी लवों पर चहके //

कोमल नयनों में नित
प्रेम की भाषा दहके
ख्याबों के घर में , तुम
नित दिन आना चुपके-चुपके //


महका दो मेरा घर -आँगन
इस ऋतुराज में दिलवर
भींग जाए मेरी यह अंखियाँ
जीवन भर हँसते-हँसते //

16 comments:

  1. Kavita ki aakhiri char line hi kavit ki jaan lagi.Rituraj ke aane ka swagat ka andaz achha laga.

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    1. शुक्रिया गोपाल भाई ... स्नेह बनाए रखे ... प्रोत्साहित करते रहे

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  2. बहुत ही भावपूर्ण...
    वसंत की मनोभावना को पूर्णरूप से प्रदर्शित करती हुयी रचना!

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    1. शुक्रिया chandan भाई ... स्नेह बनाए रखे ... प्रोत्साहित करते रहे

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  3. वाह!!!!!बबन जी बहुत खूब प्रेम के भावो की बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,, सुंदर रचना

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  4. बहुत सुन्दर रचना ...अंतिम चार पंग्तियों ने दिल हिला दिया

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  5. सुंदर प्रेम गीत. बढ़िया भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  6. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  7. बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति......

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  8. सुन्दर श्रृंगार.

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  9. sunder abhivyakti hai

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  10. sundar rachna .man ko moh liya aap ki lekhni ne .

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