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Thursday, March 15, 2012

कहीं कर न दूँ कोई नादानी





मौसम के इस रंगमहल में
लगती तुम परियों की रानी
हवा दीवानी , मेघ दीवाना
देख तुम्हारी भरी ज़वानी //

भींगें गेसू , भींगी कमर
भींग गए ये लाल अधर
भींग गए मखमली रुखसार
देख तुम्हें मैं हुआ तूफानी //

अरुणोदय के श्रींगार से
चम्-चम् करता तेरा तन
छुप जाओ तुम ,ओ कामिनी
कहीं कर न दूँ कोई नादानी ।/

7 comments:

  1. A Very sensational poem.. vow...keep writing../

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  2. श्रंगारपूर्ण काव्य..

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  3. क्या बात.. क्या बात .. वाह ! !

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  4. आपकी इस रचना को पढकर बस इतना ही कहुगां,...
    वाह!!!!!!क्या बात,क्या बात,क्या बात है,.....बबन जी,.....

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  5. मौसम के इस रंगमहल में
    लगती तुम परियों की रानी
    हवा दीवानी , मेघ दीवाना
    देख तुम्हारी भरी ज़वानी //
    वैसे तो नख शिख वर्रण में आप कटि प्रदेश से नीचे जघन प्रदेश तक भी आ सकतें हैं ,ओस संसिक्त केले के तने सी जंघाओं का भी चित्र प्रस्तुत कर सकतें हैं लेकिन भाई बब्बन हवा को बादल को दीवाना होने दीजिये ,गाने दीजिये झूमने दीजिये प्रेयसी को देख .आप फूल के कुप्पा होते रहिये .अच्छी रोमांटिक पोस्ट नैन सुख बिखेरती .श्रृंगार शब्द ठीक कर लें .

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  6. बहुत बढ़िया .
    बहुत सुन्दर कविता.....

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