मैं
इतिहास की पुस्तकें नहीं पढता
बाबर और औरंगजेब का इतिहास जानकार
क्यों सा तीर मार लूंगा मैं //
हर सुबह / पहली किरण के साथ
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
अपनी जिंदगी .....
एक जीवंत इतिहास नज़र आती है //
और मुझे
अपना ही इतिहास पढना अच्छा लगता है
इसे पढ़कर
मैं रोज
कुपथ को छोड़
सही राह चुनने में लग जाता हूँ ..//
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सब बस अपना अपना इतिहास ही सम्हाल लें।
ReplyDeleteसही कहा आपने प्रवीन भाई ... अगर सब लोग अपना इतिहास देख ले ... तो
Deleteऔर मुझे
ReplyDeleteअपना ही इतिहास पढना अच्छा लगता है
इसे पढ़कर
मैं रोज
कुपथ को छोड़
सही राह चुनने में लग जाता हूँ ..
वाह ! ! सुन्दर सीख.
कहने को कहते रहे, बड़े विचारक लोग ।
ReplyDeleteपीछे मुड़ देखें नहीं, कर आगे उद्योग ।
कर आगे उद्योग, बात में दम है प्यारे ।
पर भैया की बात, दिखाती नव-उजियारे ।
पढ़ अपना इतिहास, नहीं धारा में बहना।
दुहराऊं न भूल, वाह बब्बन क्या कहना ।।
और मुझे
ReplyDeleteअपना ही इतिहास पढना अच्छा लगता है
इसे पढ़कर
मैं रोज
कुपथ को छोड़
सही राह चुनने में लग जाता हूँ
एकदम सही बात .....थोड़े से शब्दों में चमत्कार......
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति .....
"हर सुबह पहली किरण के साथ
ReplyDeleteजब पीछे मुड़कर देखता हूँ
अपनी जिंदगी .....
एक जीवंत इतिहास नज़र आती है"
sundar abhivyakti...
हर सुबह / पहली किरण के साथ
ReplyDeleteजब पीछे मुड़कर देखता हूँ
अपनी जिंदगी .....
एक जीवंत इतिहास नज़र आती है //
वाह क्या खूब लिखा है ....
मैं
ReplyDeleteइतिहास की पुस्तकें नहीं पढता
बाबर और औरंगजेब का इतिहास जानकार
'क्यों सा' तीर मार लूंगा मैं //
आत्मालोचन ,खुद से संवाद ;वल्लाह क्या बात .
कृपया 'कौन सा कर 'लें 'क्यों सा 'को .
After reading your poem ... i came to know how thinking on oneself is essential .
ReplyDeleteबबन जी बहुत दिन बाद आपकी कोई कविता पढने को मिली.... समय थोडा कम दे पाता हूँ .. बहुत उम्दा विचार है.... आपकी रचना में....
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