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Saturday, March 10, 2012
नज़र घुमा कर यूँ मुस्काना
तेरा नज़र घुमा कर यू मुस्काना
तेरी सासें गाए नया तराना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //
कपोल तेरे हुए लाजवंती
अधरें तेरी हुई रसवंती
बात-बात पर यू शर्माना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //
ताजमहल सी देह तुम्हारी
और मोती है ये उर का पसीना
बात-बात पर कमर लचकाना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //
तेरी चुप्पी है मुझे सताती
चुप्पी में खलनायक लगती
छोडो भी अब गुर्राना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //
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ताजमहल सी देह तुम्हारी
ReplyDeleteऔर मोती है ये उर का पसीना
बात-बात पर कमर लचकाना
बिन मतलब मैं हुआ दीवाना //....वाह!! बबन जी,क्या बात है
बहुत सुंदर रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
ReplyDeleteशुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
क्यूँ रोज़ मुझसे मिलता , भोला सा एक चेहरा
ReplyDeleteवो हुस्न की बला सा ,नज़रें गड़ाए चेहरा //
अब एक ही नज़र पे ,वो मुस्कुराये चेहरा
ये मेरी शायरी है ,क्यूँ शरमाये चेहरा //
पेश किया जो गुल को ,गुलाबी हुआ वो चेहरा
दिल को कब औ कैसे ,चुरा गया वो चेहरा //
चेहरे को खूब खोजा , दिखता तुम्हारा चेहरा
हर चेहरे में छुपा सा , ज़ाना तुम्हारा चेहरा //
बाज़ार में तो यूँ भी ,चेहरे पे एक चेहरा
प्याज की वो मानिंद ,अब परत परत चेहरा //
पर वो गुलाब चेहरा ,जाना तुम्हारा चेहरा
नज़रें हटा ना पाऊं ,ये बे-हिजाब चेहरा //
अब आशियाने में भी , लो पुत गया है चेहरा
बहुत हो चूका अब , ज़ाना हटा दे पहरा //
अब ख्वाब आस्मां के , क्यूँ उदास चेहरा
चल उर्दू में कहा है ,कर सुर्ख अब ये चेहरा //
kaisaa hoon main भी divaanaa ,
ReplyDeletebin matlab main huaa divaanaa .
अच्छी prastuti .
अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसादर
बहुत ही खुबसूरत कविता ...वाह..
ReplyDelete" बात-बात पर यू शर्माना, बिन मतलब मैं हुआ दीवाना "-- वाह.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।
ReplyDeleteताजमहल सी देह तुम्हारी
ReplyDeleteऔर मोती है ये उर का पसीना
बात-बात पर कमर लचकाना../
great lines sir... how can u imagine theses/
@ Madhvi ... a poet can imagine everything
ReplyDeleteati sunder
ReplyDeleteAti sundar yahi dashahai aaj ke yuvaon ka jo bina matlav hi bahut kuchh apne aap samajh jaaten hain aur uska binawajah pratikriya bhi karte hain. Aapka rachna hamesh shringaar ras se paripurna rahta hai aur kaviyon ko pata nahin kahan kahan se prerana milti hai jo rachnaon mein jhalakta hai
ReplyDeleteMai to matlabi hun fir v hua diwana.
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