इन्हें समंदर कहूँ या झील
देख इन्हें, खिल जाता दिल //
इन आखों का रंग है श्यामल
जैसी इसमें खिला कोई कमल //
ये काले बादल है नीला आसमान
देख इन्हें मैं हो जाता बेईमान //
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आँख फाड़ना ताड़ना, ठंडी करना आँख ।
ReplyDeleteआँख फेरना ना कभी, बट्टा लागे शाख ।।
बेहतरीन
ReplyDeleteओह इस किवता के लिए चित्र नहीं ढूँढ पाये! शेष तो लगता है आपने चित्र देख कर ही लिखी हैं।
ReplyDeleteवाह !! 'आपकी ऑंखें' ..... बहुत खूब.
ReplyDeleteरची उत्कृष्ट |
ReplyDeleteचर्चा मंच की दृष्ट --
पलटो पृष्ट ||
बुधवारीय चर्चामंच
charchamanch.blogspot.com
बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना:-)
ReplyDeleteबहुत खूब!sir jee
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,..
ReplyDeleteतेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा ही क्या है ......बहुत सुंदर
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