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Tuesday, October 19, 2010

जाति के बिष-वृक्ष में अब फल लगने लगे है ...

अजीब बिडंवना है भारतीय संस्कृति के ....बेहतर तो यही था कि इसे छेड़ा ही न जाए । मगर हमारे राजनेताओ ने अपनी कुशार्ग बुद्धि से इस जाति -संस्कृति से खूब खेला और लोगो के मन /दिल और दिमाग कि उर्वर भूमि पर जाति के विष वृक्ष बोये ।
अब ये वृक्ष बड़े होकर फल देने लगे है । एक तरफ उनका नारा होता है ...जाति -तोड़ो ,देश बचाओ ....फिर दूसरी तरफ आयोग बनवाकर उनकी सामाजिक /आर्थिक अध्धयन कराया जाता है । एक बात समझ में नहीं ...कि आखिर आर्थिक आधार पर लोगो कि जाति बनाने में कौन सा रोड़ा बाधक है ।
मैं समझता था सिर्फ बिहार में जाति का रंग लोगो पर ज्यादा चढ़ा है । मगर आज जब अखवार देखा तो मेरे पावं
तले की ज़मीं खिसक गई । भाई सच में जाति का जो विष -वृक्ष नेताओं ने बोया है ...उसमे अब फल बड़ी तेजी से लग रहे है ।
कभी हिंदी के महान उपन्यासकार "मुंशी प्रेमचंद्र " ने पंच को परमेश्वर कहा था ।
गुजरात उच्च -न्यायालय में एक दलित ने याचिका देकर यह गुहार लगाई है कि उसका केश जिस जज के यहाँ है
वे ब्राह्मण है और वे मेरे साथ न्याय नहीं कर सकेगे अतः मेरा जज बदल दिया जाय । अखवार के अनुसार यह मामला मकवाना जिले का है । मित्रों यह महज एक मामूली समाचार नहीं है .....यह पुरे समाज कि मनो दशा को दिखलाती है कि किस कदर जाति का भुत लोगो के दिलों -दिमाग पर छा रहा है ।
हमारे समाजशास्त्रियो को इस ओर सोचना होगा ..और जाति का जो विष -वृक्ष फ़ैल रहा है ...उसे काटने कि दिशा में एक नए सिरे से प्रहार करना होगा ।
मेरा यह सोच कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे .

9 comments:

  1. बब्बन जी : बहोत अच्छा मुद्दा उठाया है आपने ,आपके विचार सार गर्भित हैं लेकिन मै आपको बताना चाहूँगा यह उस दलित की सोच नहीं है जिसका खबर के मुताबिक आपने जिक्र किया है ,यह सोच है उस वकील की जिसने यह फ़रियाद न्यायाधीश के पास लेकर गया है , यह उसी के दिमाग की जड़ है , आज हमारे देश के न्यायालयों में लाखों मुक़दमे जो पेंडिंग है उसका सबसे बड़ा कारण इस देश के कुछ वकील भी हैं अपने निजी स्वार्थ के लिए जो बिना किसी बात के बतंगड़ खड़ा करते हैं .मै आपको एक कहानी सुनाता हूँ ,हरियाणा के एक गावं में एक वकीलों का दल सैर सपाटे के लिए गया , वहां उसने एक खलिहान में एक किसान को देखा की वोह एक तरफ बैठ कर अपना काम कर रहा है और उसका बैल धान की फसल के ऊपर गोल गोल घूम कर धान की गहाई कर रहा है ,वकील हैरान हुए और किसान से पूछा ,भाई यह बैल आपने कैसे ट्रेंड किया है जो अपने आप गोल गोल घूम रहा है ,उसके पीछे कोई है नहीं और यह कयों घूम रहा है ? किसान ने कहा यह बैल धान की गहाई कर रहा है गोल गोल घूम के और इससे मुझे चावल की फसल मिलेगी ,फिर वकील ने दूसरा प्रश्न किया भाई यह तो ठीक है लेकिन तुम्हे कैसे ऐतबार है इसके ऊपर यह रुक जाये न करे तो तुम्हे कैसे पता चलेगा की यह घूम रहा है ? किसान ने कहा मैंने इसके गले में घंटी बाँध रखी है और रुकेगा तो मुझे पता चल जायेगा क्योंकि तब घंटी बजेगी नहीं और मै उससे आकर एक छड़ी लगा कर डाटूंगा तो फिर घूमने लगेगा धान की फसल के ऊपर ,वकील ने तीसरा प्रश्न किया ,अच्छा यह बताओ यदि यह एक जगह खड़ा होकर अपनी गर्दन को यूँ ही हिलाता रहे तो भी घंटी बजेगी और यह काम तब कर नहीं रहा होगा ,तब तुम कैसे पता करोगे ? किसान ने कहा वकील साहब मेरे बैल ने वकालत नहीं पढ़ी की वोह यह करेगा ........ :)

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  2. बबनजी,
    इस संबन्ध में, १७५ साल पहले, 2 February 1835 को British Parliament में Lord Macaulay द्वारा दिया गया संबोधन को जानना अत्यधिक प्रासंगिक होगा:
    "I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated"

    १७५ साल पहले जो जहर का बीज बोया गया था, शायद उसे अपने देश के राजनेताओं ने नहीं पहचाना बल्कि उसे कार्यान्वित मात्र किया है... नतीजा सामने है...
    देश की रक्षा प्रभु करें यही प्रार्थना है...

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  3. सही कहा बबन जी, आपने सार्थक मुद्दे की तरफ लोगो का ध्यान खींचा है. वाकई ये विष-व्रक्ष दिन व दिन बढता ही जा रहा है...

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  4. thanks madhu ji for very iintial information ..that how india became slave?

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  5. बहुत-बहुत धन्यवाद.. ध्रुवजी और मधुसूदनजी अपनी पैनी प्रतिक्रियाओं के लिए.
    बबनभाई ने अपने को अवश्य ही अजीब सी स्थिति में पाया होगा जब उन्होंने इस समाचार को देखा/पढ़ा होगा. उनकी तरह कोई संवेदनशील पाठक हिल उठेगा. इस पर चर्चा उठा कर बबनभाई ने श्लाघनीय कार्य किया है. मैं चाहूँगा कुछ और सदस्य इस समाचार टुकड़े पर अपने मंतव्य दें. किन्तु, सारे मंतव्य आप दोनों की प्रतिक्रियाओं के सापेक्ष होने चाहिए.

    धन्यवाद बबनभाई एवं ध्रुवजी, मधूसुदनजी.

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  6. Babbanji...your thought nd comments are of genuine concern ..but still I feel its the doing of handful people nd not the whole public who acts or thinks in this direction....its true we are little more liberated towards some nd prejudiced towards others....change in our thinking nd actions is definitely needed....

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  7. जाति के बिष-वृक्ष में अब फल लगने लगे है*****Shri Baban bhai Ji, aap ka kahana 100% sahi hai...Aaj BHARAT Aajad huye 63 sal ho gaya...in 63 salo me hamari jitani bhi sarakare aayi sabane apane- apane hisab se JATI ke NAAM KA BIJ BOYA jo aaj bahut baada VRIKSH ka rup le liya hai. ye BHARAT ke liye bahut hi chinta ka vishay hai...hamara 21vi shadi me ye hal hai...BRART me ab parvart ki jarurat hai...Mujhe lagata hai ki SWAMI RAM DEV JI ka prayas kam aayega. aap sabhi kiya mere is baat se sahamat hai?...aap ka ye muda bahut hi sarahaniya hai...Mai aash vadi hun..umid karata hun ki parivarat hoga...aur aap ke agale SAMAJIK MUDDO SE JUDI rachana ka bhi intajar kar raha hun...MA SARASWATI aap ki KALAM ko aur jaida shakti den...Dhanyavaad.

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  8. Babanji.....kahin na kahin to hamaari hi kamin hai,doosron ki taraf ungliyan kab tak uthate rahenge....aapsi vyavhaar kaisa hona chahiye, yeh bhi kya hume koi aur sikhaayega.....itni to hamari apni soch bhi kaam karti hai.Apne bheetar jhaankenge to adhiktar samasyayon ka samadhan khud hi dhoond lenge.

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  9. लोगों की मानसिकता नहीं है . वो किसी राजनीतिक दल की मानसिकता का अनुसरण करते है .

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