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Tuesday, October 11, 2011

अब चैन कहाँ


कचनार सी कमर लचीली
और चुम्बक हैं तेरे नैन
नींद नहीं अब आँखों में
न आता दिन में चैन //

बिन पिए अब मैं ,बहकता
बिन कारण के हँसता -रोता
बिन पंख मैं उड़ता रहता
मैं कहता, अब दिन को रैन //

4 comments:

  1. श्रंगारोत्कर्षोद्गार....

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  2. बेहद ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना!

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  3. बहुत ही सुंदर ।
    मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है धन्यवाद ।.

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  4. बहुत हि सुन्दर
    कम शब्दों में पूरा किस्सा....

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