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Wednesday, October 31, 2012

अब तुम जवाँ हो


जब तुम्हें देख .....
हवा सीटी बजाने लगे
पहाड़ों पर
जमी बर्फ पिघलने लगे
और
प्रणय -लीला में लीन
मोर-मोरनी का जोड़ा ठीठक जाय
यकीन मानों...
अब समय
आपके आँचल उड़ाने का नहीं रहा //

13 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया विवेक तिवारी भाई !

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  2. "अब समय
    आपके आँचल उड़ाने का नहीं रहा"

    .....बढिया.

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  3. और 'वो' मौसम भी नहीं रहा..

    क्या बात है.. वाह !

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  4. सच कहूँ तो अब समय इस तरह के रोमांटिक कविता का भी नहीं रहा है.... हा हा हा.... मेरे इस कथन को अन्यथा न लें, बबन सर!!
    अब प्यार के इस तरह का संवाद कहाँ अब तो एस एम् एस का ज़माना है..... लोग कुछ भी शब्दों में प्यार का 'नाटक' कर लेते हैं....
    वैसे आपकी लेखनी कमाल की है...!!!

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  5. वाह क्या बात !
    जब हवा चले बतियाती , अपने आंचल को संभालना
    मौसम में दीखे बेइमानी , अपने आंचल को संभालना
    उठा न दे कहीं लाज का घुंघट तेरा
    जवाँ हो रही हो तुम , अपने आंचल को संभालना

    ......... सरल सुतरिया......

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  6. सपाट बयानी किन्तु रोमांटिक

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  7. आँचल सम्हालते है वो सीने पे नाज से,
    यह कहके पड़ रही है तुम्हारी नजर कहाँ,,,?

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  8. सटीक!!


    ठीठक = ठिठक!! :)

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  9. Mast hai aab aanchal udarne ka samay nahi raha

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