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Saturday, October 27, 2012

स्त्री


खिलते गुलाब सी
चेहरे वाली
चाँद सी दिखने वाली
हरश्रृंगार के फूलों सी
मुस्कुराने वाली
कमल के पत्तों सी
चिकनी त्वचा वाली
मोरनी सी चलने वाली
नवयौवना ....
कभी नागिन भी बन सकती है //

फिर भी मैं
उनके कसीदे गढ़ता रहूंगा
क्योकि ...
उनसे ही सृष्टी है ..//

13 comments:

  1. nice one sir ji ....naaree shakti rupa hai ..isase pangaa nahi lene kaa

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  2. very gud,,,nice way to describe the trueth,,,thanks pandey ji

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  3. आखरी लाइनों को प़ढ़ते ही हंसी आ गई..या कहें कि पुराने दर्द ने ठहाका लगाने को मजूबर कर दिया..सोचा था कि आपकी गंभीर कविताओं को नहीं पढ़ना....इसलिए रोमांटिक कविताओं वाले ब्लाग पर आ गया..पर आखिरी लाइन पढ़ने के बाद गंभीर कविता पर पहुंचा तो 5 अक्टूबर वाली कविता पढ़ी...अब समझ नहीं आ रहा की किसे रोमांटिक कहूं...दोनो में ही दर्शन है....पर मन मेरा प्रसन्न है....वैसे गुमान वाली कविता पर तस्वीर किसकी है ये बता दें....अगर तस्वीर वाली आपकी जिंदगी में तो भई गुमान तो होगा ही....

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  4. गजब है भाई, अनन्त तक जाता है आपका समर्पण..

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  5. शुक्रिया
    अजय तिवारी जी
    प्रवीण पाण्डेय जी
    केवल जोशी जी
    रविकर जी
    पढ़ते रहिये

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  6. फिर भी मैं
    उनके कसीदे गढ़ता रहूंगा
    क्योकि ...
    उनसे ही सृष्टी है ..वाह बहुत ही सुन्दर विचार एवं भाव ..भाई !!

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  7. jeevan bhi to isee ka sangam hai,,,,aakhir stree ki sunderta ki bhangimaa ....menkaa aur durga,,,dono roop se hi jeevan ki poornata hai baban ji ,,,achhee kavita hai aapki,,,badai,,,

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