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bahut hi sunder.
ReplyDeleteशुक्रिया विवेक तिवारी भाई !
Deleteबहुत बढिया ..
ReplyDelete"अब समय
ReplyDeleteआपके आँचल उड़ाने का नहीं रहा"
.....बढिया.
और 'वो' मौसम भी नहीं रहा..
ReplyDeleteक्या बात है.. वाह !
सच कहूँ तो अब समय इस तरह के रोमांटिक कविता का भी नहीं रहा है.... हा हा हा.... मेरे इस कथन को अन्यथा न लें, बबन सर!!
ReplyDeleteअब प्यार के इस तरह का संवाद कहाँ अब तो एस एम् एस का ज़माना है..... लोग कुछ भी शब्दों में प्यार का 'नाटक' कर लेते हैं....
वैसे आपकी लेखनी कमाल की है...!!!
वाह क्या बात !
ReplyDeleteजब हवा चले बतियाती , अपने आंचल को संभालना
मौसम में दीखे बेइमानी , अपने आंचल को संभालना
उठा न दे कहीं लाज का घुंघट तेरा
जवाँ हो रही हो तुम , अपने आंचल को संभालना
......... सरल सुतरिया......
सपाट बयानी किन्तु रोमांटिक
ReplyDeleteआँचल सम्हालते है वो सीने पे नाज से,
ReplyDeleteयह कहके पड़ रही है तुम्हारी नजर कहाँ,,,?
RECENT POST LINK...: खता,,,
Beautiful....
ReplyDeleteसभी ब्लॉग पोस्टों एवं टिप्पणियों का बैकअप लीजिए
सटीक!!
ReplyDeleteठीठक = ठिठक!! :)
Mast hai aab aanchal udarne ka samay nahi raha
ReplyDeletegajb
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