Followers

Tuesday, October 16, 2012

सोहबत


मैं रूपोश  में फिरता था , रुआब के लुट जाने से
आपकी सोहवत ने ,तो ,   मेरा रूतबा बढ़ा दिया //

आपकी चहलकदमी से, शबनम को शबाब आ गया
ज्योही रुख से नकाब हटा, सामने महताब आ गया //

(रुआब -- रोब , रूपोश - मुह छिपाने वाला , सोहबत -संगती ,शबाब - जवानी , महताब - चाँद)

12 comments:

  1. अच्छी लगी आपकी कविता ..ऐसी सोहबत सबको मिले

    ReplyDelete
    Replies
    1. ..पढ़ती रहे .. शुक्रिया

      Delete
    2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

      Delete
  2. बहुत खूब लिखा है आपने |
    मेरे ब्लॉग पर भी पधारें |

    ReplyDelete
  3. BAHUT NEEK LIKHNE BAANI SAA RAOUWAAN,,,,

    ReplyDelete
  4. wah ,,kya bat hai,,,sunder tam,,,ap ke laekhni me jado hai ,,,thanks ,,pandey ji god bless u

    ReplyDelete
    Replies
    1. रमेश भाई ... स्नेह बनाए रखे

      Delete
  5. छा रहे हो दोस्त ,

    तस्वीर बड़ी मारक ला रहे हो .

    कहाँ से लाते हो ये खूबसूरत बदन ,

    ये प्रसन्न बदन चेहरे ?

    आपकी रचनाओं पे भारी पडतें हैं ये बिंदास चेहरे .

    ReplyDelete

Popular Posts