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Thursday, October 11, 2012

लस्सी


तुम्हारी बातें ..
आम के अंचार खाने जैसी लगती है
या फिर
ठेले पर बिक रही
गुपचुप और चाट खाने जैसा
कभी -कभी तुम्हारी बात
इडली और माशालदोसे
खाने जैसी लगती है //
और कभी-कभी
करेला का रस पीने जैसा //

ऐसा कभी नहीं लगा मुझे
तुमसे बाते कर
जैसे मै....
पी रहा होऊं
शहद और मकरंद की लस्सी

9 comments:

  1. बहुत सुंदर मस्त अभिव्यक्ति ,,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  2. फोटो से तो ऐसा नहीं लगता है कि इनकी आवाज में करेले के रस जैसा कोई तीतापन होगा, शहद और मकरंद की लस्सी जैसी ही होनी चहिए। वैसे कविता अच्छी है

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  3. फोटो से तो ऐसा नहीं लगता है कि इनकी आवाज में करेले के रस जैसा कोई तीतापन होगा, शहद और मकरंद की लस्सी जैसी ही होनी चहिए। वैसे कविता अच्छी है

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    Replies
    1. मनोज जी .. जो दिखता है .. वो होता नहीं

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  4. बहुत ही प्रभावी रचना..

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. सुन्दर चित्रांकन

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