तेरा आँचल आवारा बादल ,पता नहीं कहाँ बरसेगा
यौवन के इस रसबेरी को पाने, कौन नहीं तरसेगा //
बूंद -बूंद मुस्कान होठों का, पता नहीं कब बन जाए ओला
वह होगा शूरवीर ही ,जो झेले तेरी आँखों का गोला
देख लाल -लाल होठों के फूल, तबियत मेरी बिगड़ रही
उर के इस मक्खन चखने, मन भवरा कब-तक तडपेगा //
सुरमई पवन हुई सुगन्धित ,और हुई सुवासित बगिया
कब होगा मधुर मिलन और कब मेरा बाहं बनेगा तकिया
हर मुस्कान एक झटका देती और हंसी गिराती बिजली
गेसू से गिरते झरने में ,दुबकी लेने कौन नहीं तडपेगा //
चाह जहाँ पर है सखे, राह वहीँ दिख जाय ।
ReplyDeleteस्नेह-सिक्त बौछार से, अग्नि-शिखा बुझ जाय ।।
श्रंगार भावाभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवाह!!!!बहुत सुंदर श्रंगार भाव की प्रस्तुति,..बबन जी बधाई
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
चाह जहाँ पर है सखे, राह वहीँ दिख जाय ।
ReplyDeleteस्नेह-सिक्त बौछार से, विरह-अग्नि बुझ जाय ।।
सरस रोचक
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||
सादर
charchamanch.blogspot.com
wawa wah! waah!
ReplyDeleteबबन जी की कविता पढ़ते हुए बिहारी जी याद आते है...........
ReplyDeletei am very thankful to " charcha manch" for giving a space there. this is a honour for writer/poets/artists./
ReplyDeleteश्रृंगार का प्रतीक्षित संयोग पक्ष .बढ़िया प्रगाढ़ अनुभूतियों से संसिक्त मधुर रचना भीनी सुगंध सी किसी की देह की .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुरमई पवन हुई सुगन्धित ,और हुई सुवासित बगिया
ReplyDeleteकब होगा मधुर मिलन और कब मेरा बाहं बनेगा तकिया
हर मुस्कान एक झटका देती और हंसी गिराती बिजली
गेसू से गिरते झरने में ,दुबकी लेने कौन नहीं तडपेगा /
पाण्डेय जी बहुत सुन्दर ..मनमोहक ...श्रृंगार रस छलक पड़ा .....
भ्रमर ५
रस-रंग भ्रमर का
दो शब्द ठीक कर दें और उत्तम
बांह , डुबकी
बढ़िया प्रस्तुति! आपकी कविता में भाव की बहुलता इसे पठनीय बना देती है । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
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