मन भवरा क्यों मचल उठा है ,होकर भी यह बावन //
होठो से क्यों गीत निकलते, जो पहले सिले हुए थे
क्यों आग निकलता तन -मन से,जो पहले बुझे हुए थे
अंग-अंग क्यों हुआ है पागल ,जब से आया सावन
मन भवरा क्यों मचल उठा है ,होकर भी यह बावन //
झूले में उर का आँचल का उड़ना, लहराना गेसू का
हंसी शराब सी तेरे अधरों की, और लाली टेसू सा
लाजवंती बनी क्यों कामवंती,जब से आया सावन
मन भवरा क्यों मचल उठा है ,होकर भी यह बावन //
हर जगह अब मोर -मोरनी, हैं कानों में कुछ बतियाते
हर जगह अब शेर-शेरनी, क्यों नहीं शोर मचाते
ओ सावन के बादल , क्यों बना दिया मुझको रावण
मन भवरा क्यों मचल उठा है ,होकर भी यह बावन //
पर न जाने बात क्या है...
ReplyDeletePrakirtik sundertaa aur manvik bhaavon ka sunder sammishran
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteसहज सरल मानसिक उद्वेलन .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति,,, के लिए बधाई
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
इस गीत को पढ़कर मन मयूर नाच उठा।
ReplyDeleteसुन्दर प्रीत भरी रचना...
ReplyDeleteवाह उस्ताद वाह !
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDeleteझूले में उर का आँचल का उड़ना, लहराना गेसू का
ReplyDeleteहंसी शराब सी तेरे अधरों की, और लाली टेसू सा
लाजवंती बनी क्यों कामवंती,जब से आया सावन
मन भवरा क्यों मचल उठा है ,होकर भी यह बावन //
एक और गीत पांडे जी का प्रतीक्षित .इस गीत के लिए पुनश्चय बधाई .
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteआ रहा है सावन |