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Monday, May 14, 2012

सावन को आने दो

छा  गयी मस्ती तुम पर गोरी ,जब  से आया सावन 
मन भवरा क्यों  मचल उठा है ,होकर  भी यह बावन //

होठो से क्यों गीत  निकलते, जो पहले  सिले  हुए थे 
क्यों आग निकलता तन -मन से,जो पहले बुझे हुए थे 
अंग-अंग क्यों हुआ है पागल ,जब से आया सावन 
मन भवरा क्यों  मचल उठा है ,होकर  भी यह बावन //

झूले में उर का  आँचल का  उड़ना, लहराना गेसू  का 
हंसी शराब सी तेरे अधरों की, और लाली टेसू सा 
लाजवंती बनी क्यों कामवंती,जब से आया सावन 
 मन भवरा क्यों  मचल उठा है ,होकर  भी यह बावन //

हर जगह अब मोर -मोरनी, हैं कानों में कुछ बतियाते 
हर जगह अब शेर-शेरनी,   क्यों नहीं शोर मचाते 
ओ सावन के बादल , क्यों बना  दिया मुझको  रावण 
मन भवरा क्यों  मचल उठा है ,होकर  भी यह बावन //


12 comments:

  1. पर न जाने बात क्या है...

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  2. Prakirtik sundertaa aur manvik bhaavon ka sunder sammishran

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...

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  5. सहज सरल मानसिक उद्वेलन .

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  6. बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति,,, के लिए बधाई

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

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  7. इस गीत को पढ़कर मन मयूर नाच उठा।

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  8. सुन्दर प्रीत भरी रचना...

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  9. वाह उस्ताद वाह !

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  10. झूले में उर का आँचल का उड़ना, लहराना गेसू का
    हंसी शराब सी तेरे अधरों की, और लाली टेसू सा
    लाजवंती बनी क्यों कामवंती,जब से आया सावन
    मन भवरा क्यों मचल उठा है ,होकर भी यह बावन //
    एक और गीत पांडे जी का प्रतीक्षित .इस गीत के लिए पुनश्चय बधाई .

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  11. बढ़िया प्रस्तुति |
    आ रहा है सावन |

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