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Monday, November 14, 2011

बिना बसंत नवगीत


विपुल क्षितिज सी तेरी आँखें
कपोल तेरे नवनीत
तुम्हें देख मेरी अधरें गाती
बिना बसंत नवगीत //

अम्बर से लेकर अवनी तक
प्रतिबिम्ब तुम्हारा दिखता
आओ सजनी , पंख लगाकर
समय रहा है बीत //

4 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना...शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन..

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  2. बबन जी '....
    क्या खूब लिखा,
    आओ सजनी,पंख लगाकर.समय रहा है बीत...
    सुंदर भावों लिखी प्यारी रचना..
    मेरे पोस्ट में स्वागत है ...

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  3. हर बार नये प्रवाह में बहा देने की क्षमता रखते आपके शब्द।

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  4. aapki to har kavya me alag alag bhau milte hai jise padhne k baad post kiye bina raha nahi jata

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