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Friday, January 20, 2012
मैं तुम्हें हँसने क्यों कहता हूँ ?
जानती हो प्रिय !
मैं तुम्हें हँसने क्यों कहता हूँ ...
तुम कहोगी ....
शायद ...मैं हँसते वक़्त ज्यादा सुंदर लगती हूँ /
मगर तुम गलत हो प्रिय !
तुम्हारी हंसी ...
पानी का वह छीटा है
जो सब्जी बेचने वालों द्वारा
पुरानी सब्जियों पर मारा जाता है
वे फिर से ताज़ी हो जाती हैं /
ठीक वैसे ही है
तुम्हारी हंसी //
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aapki ye panktiyan vaakayi hriday sparshi hain aur prem ki gahrayi ka ehsaas karaati hain...................................................... तुम्हारी हंसी ...
ReplyDeleteपानी का वह छीटा है
जो सब्जी बेचने वालों द्वारा
पुरानी सब्जियों पर मारा जाता है
वे फिर से ताज़ी हो जाती हैं /
ठीक वैसे ही है
तुम्हारी हंसी //
aapki ye panktiyan vaakayi hriday sparshi hain aur prem ki gahrayi ka ehsaas karaati hain...................................................... तुम्हारी हंसी ...
ReplyDeleteपानी का वह छीटा है
जो सब्जी बेचने वालों द्वारा
पुरानी सब्जियों पर मारा जाता है
वे फिर से ताज़ी हो जाती हैं /
ठीक वैसे ही है
तुम्हारी हंसी //
a great poem. Thankssssssssssss...
ReplyDeleteताजगी का फव्वारा
ReplyDeletealag tarah ki kavita...
ReplyDeletewah bhai badi hi adbht kavita hai aap ki wah bha wah
ReplyDeleteतुम्हारी हंसी ...
ReplyDeleteपानी का वह छीटा है
जो सब्जी बेचने वालों द्वारा
पुरानी सब्जियों पर मारा जाता है
वे फिर से ताज़ी हो जाती हैं
वाह! क्या बात है....
ReplyDeleteखूबसूरती की तारीफ का नया अंदाज।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह!!!!!!ताजगी लाने नायाब नुस्खा,..अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
बहुत खूब..
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteवाह: तरीफ का नया ही अंदाज..अच्छा लगा..अभिव्यंजना में आने के लिए धन्यवाद..
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