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Monday, November 15, 2010

२०साल पहले की बात याद आई .

आज जब समाचार पत्र में पढ़ा दिल्ली में एक मकान गिरने से ५० आदमी मर गए । तो लगा मैं भी दोषी हूँ एक सिविल इंजिनीयर होने के नाते ।
शुरू
-शुरू नौकरी लगी थी । मेरा एक मित्र दिल्ली की नौकरी छोड़ बिहार सरकार की नौकरी करने आया था । वह दिल्ली नगर निगम के अभियंत्रण सेल में था । एक टीम थी अभियंताओ की ,जिसमे वह भी था । उस टीम का काम वैसे मकानों को चिन्हित करना था , जो कमजोर हो चूके है और किसी भी क्षण गिर सकते है ।
मेरा मित्र बता रहा था कि बिहार सरकार में जो उसे मासिक वेतन मिल रहा है उसे वह दिल्ली नगर निगम के नौकरी में ५ दिनों में कमा लेता था । वस्तुतः वे लोग कमजोर मकान चिन्हित करते थे मगर मकान मालिक रूपये देकर उन्हें ऐसा करने से रोकते । शायद आज भी वही परंपरा पुरे जोर से चल रही हो ।
अब दोष किसका है आप स्वं जान सकते है .

4 comments:

  1. अब .....
    रावन /कंस /कौरव के
    बनाए रास्ते पर फर्राटे भरता हूँ
    और
    बेईमानी /फरेब का
    हवाई जहाज उड़ाता हूँ ॥
    Babanji, insaan ka laalach usse kahin bhi pahuncha sakta hai.

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  2. baban ji........chahe sahi aadat ho ya galat.......uski shuravat to kahin na kahin se hoti hai.......aap ne apni life mein jhaanka to ye paaya........agar har koi antarman mein jhaanke to nazar aayega ki......kuchh na kuchh ghapla sabhi kar rahein hain.............aur ye jo building giri hai........isne to pol hii kho di......

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  3. ji poonam ji ..abhi to pure desh me bharastrachar ki hi charcha ho rahi hai ...

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  4. जब तक महाभारत कल से पूर्व की अपनी पद्धति पुनः नहीं अपनायेंगे,भ्रष्टाचार को दूर नहीं भगा पाएंगे.

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