अधरों का रस जी भर पी लो
उर के खिलौने से तुम खेलो
हवा बसंती , मेरी जुल्फों से लहरा दो
मक्खन सी काया को मेरी
अब जी भर कर सहला दो
आँगन में कोई फुल खिला दो
ओ मेरे साजन !
मुझको अब तू माँ बना दो
उर के खिलौने से तुम खेलो
हवा बसंती , मेरी जुल्फों से लहरा दो
मक्खन सी काया को मेरी
अब जी भर कर सहला दो
आँगन में कोई फुल खिला दो
ओ मेरे साजन !
मुझको अब तू माँ बना दो
अधरों का रस जी भर पी लो
ReplyDeleteउर के खिलौने से तुम खेलो
हवा बसंती , मेरी जुल्फों से लहरा दो
मक्खन सी काया को मेरी
अब जी भर कर सहला दो
आँगन में कोई फुल(फूल ) खिला दो
ओ मेरे साजन !
मुझको अब तू (तुम )माँ बना दो
सूक्ष्म जीव का आवाहन करना पड़ता है मातृत्व और पितृत्व के लिए .दैहिक प्रेम का सूक्ष्म (परिपूर्ण )सौपान है मातृत्व .
ram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
आपका जबाब नही,,लाजबाब,,,,बबन जी,
ReplyDeleteRECENT POST - मेरे सपनो का भारत
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteKamal ki shabd rachana karte hai aap, maine kuchh our posting bhi padhi hai aap ki Check out my blog Our India
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