बहुत देर हो चुकी तुम्हारे
इंतज़ार में , अब बहारों की हो चली हूँ //
पहले तो तुम
लफ़्ज़ों के धागे और लवों की सुई से
हर जगह मेरा नाम टांक दिया करते थे
मेरी अदाओं को छोडो
मेरी मुस्कान पर तुम रोज सौ बार मरा करते थे //
कभी कड़ी धुप हूँ ,तो कभी गुनगुनी
मुझसे क्या खता हो गई
क्यों कर देते हो ,अब हर बात अनसुनी //
मैं मयखाने नहीं जाऊँगा ,ग़मों को मिटाने
दरख्तों ने मुझसे कहा है
अब नए पत्तों को उगाने के दिन आ गए हैं //
परिवर्तन नियम है, इसका आनन्द जिया जाये।
ReplyDeleteजब झील रेत हो जाती है, सैसव भी बूढा सा लगता है.
ReplyDeleteतब गम के बादल छाते है,सब अन्धकार सा दिखता है!
घनघोर घटा में सुर्ख धुंआ,आँसू बन कर आ जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है!
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
"मैं मयखाने नहीं जाऊँगा ,ग़मों को मिटाने
ReplyDeleteदरख्तों ने मुझसे कहा है
अब नए पत्तों को उगाने के दिन आ गए हैं"
वेशकीमती ख्याल.. वाह !!
behtreen sayari....
ReplyDeleteaksar aaisa hi hota hai parivartan sansaar ka niyam hai......bahut umdaaaaa..............................
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति , बड़े भाई .... मरहबा !!
ReplyDeleteसुंदर रचना,बढ़िया प्रस्तुती...
ReplyDeleteBahut achha likha.
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