
अंग- अंग से यौवन बरसे
अँखियाँ दागे फुलझरियां
पक्षी बन मन उड़ जाता
जब लेती तुम गलबहियां //
हर महीना फागुन सा लगता
जब तेरी पायल बजती
हर महीना सावन सा लगता
जब तेरी आँचल उड़ती
चेहरे पर गेसू उड़ती ऐसे
मानों करती है शशि
काले घन से अठखेलियाँ //
पक्षी बन मन उड़ जाता
जब लेती तुम गलबहियां //
अंग-अंग मेरे, तेरे होंगे
सरगम गायेंगी सांसें
संगम होंगें उर के
जब मिल जायेंगी बाँहें
कोयल चहके या न चहके
बगिया महके या न महके
महक उठेगी अमरइयां
पक्षी बन मन उड़ जाता
जब लेती तुम गलबहियां //